राष्ट्रीय आंदोलन की तपिश में भी भारत-जापान संबंधों में एक निरंतरता बनी रही जिसे जवाहलाल नेहरू के काल में एक नई स्फूर्ति प्राप्त हुई। विवेचना करें।
09 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
प्रश्न विच्छेद स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत-जापान संबंधों को बताना है। जवाहरलाल नेहरू के काल में इन संबंधों में आई नई स्फूर्ति का उल्लेख करना है। हल करने का दृष्टिकोण एक संक्षिप्त भूमिका लिखें। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत-जापान संबंधों का उल्लेख करें। जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में इन संबंधों में आई प्रगाढ़ता को बताते हुए तार्किक निष्कर्ष लिखें। |
भारत और जापान के संबंध ऐतिहासिक काल से ही मज़बूत रहे हैं, जिसमें सांस्कृतिक संबंधों विशेषकर बौद्ध धर्म ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये संबंध राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर वर्तमान में ‘जापानी-भारतीय भाईचारा’ तक विस्तृत हो गए हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत-जापान संबंध:
20वीं सदी के प्रारंभ में जब जापान एक शक्ति के रूप में उभरा तो इसके सकारात्मक प्रभाव देखे गए और इसे एशिया के पुनरुत्थान के रूप में देखा गया। अनेक महत्त्वपूर्ण भारतीयों जैसे- सुरेशचंद्र बन्दोपाध्याय, मन्मथ नाथ घोष ने जापान की यात्रा की और वहाँ के अनुभवों को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रयोग किया।
यद्यपि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और जापान विरोधी थे किंतु जापान ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में विशेषकर आज़ाद हिन्द फौज के माध्यम से सहयोग प्रदान करने का प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप भारत-जापान संबंधों को बढ़ावा मिला।
स्वतंत्रता के पश्चात् जहाँ भारत अनेक समस्याओं से पीड़ित था, वहीं जापान की स्थिति भी द्वितीय विश्व युद्ध के कारण कामोबेश समान थी। ऐसी स्थिति में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिये विशेष प्रयास किये।
भारत और जापान के मध्य आधुनिक संबंधों की शुरुआत भारतीय जज द्वारा सुदूर-पूर्व अंतर्राष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण में जापान के पक्ष में फैसला दिये जाने के कारण हुई। भारत ने 1951 में जापान की संप्रभुता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता को सीमित किये जाने के प्रयासों के कारण सैन-फ्रांसिस्को शांति सम्मेलन में भाग लेने से इनकार कर दिया था। जापान की संप्रभुता बहाली के बाद भारत और जापान ने 1952 में राजनयिक संबंध स्थापित किये। इसके बाद 1957 में जापानी प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की।
इन्हीं मज़बूत संबंधों का परिणाम था कि जापान ने भारत के विकास को बढ़ावा देने के लिये येन ऋण प्रदान किया। यद्यपि शीत-युद्ध के दौरान जापान, अमेरिकी गठबंधन में शामिल था किंतु भारत ने ‘गुटनिरपेक्ष की नीति’ को स्वीकार किया। इसके बावजूद भारत और जापान संबंध लगातार मज़बूत होते गए। इसे जवाहरलाल नेहरू की कूटनीतिक सफलता ही माना जाएगा।
निष्कर्षत: कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्थापित हुए संबंध वर्तमान में सैन्य एवं समुद्री सुरक्षा, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक, असैन्य परमाणु समझौता तक विस्तारित हो गए हैं। वर्तमान में क्षेत्रीय और वैश्विक शांति की स्थापना तथा शक्ति संतुलन के लिये भारत-जापान संबंधों का बेहतर होना आवश्यक है जिसके लिये निरंतर प्रयास किया जाना आवश्यक है।
संबंधित स्रोत : इंटरनेट, विपिन चंद्र।