वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय के रूप में राजकोषीय संघवाद को संतुलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, फिर भी इसकी सिफारिशें बाध्यकारी प्रकृति की नहीं है। विवेचना करें। (250 शब्द)
09 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
प्रश्न विच्छेद वित्त आयोग की राजकोषीय संघवाद के संदर्भ में भूमिका एवं शक्तियाँ। हल करने का दृष्टिकोण वित्त आयोग की परिचयात्मक भूमिका। राजकोषीय संघवाद के संदर्भ में इसके कर्त्तव्य। सिफारिशों की प्रकृति की चर्चा करते हुए निष्कर्ष लिखें। |
भारतीय संसदीय शासन प्रणाली में सहयोगी संघवाद की परिकल्पना की गई है। इसके तहत राजकोषीय संघवाद को संतुलित करने में वित्त आयोग की चर्चा मुख्यत: अनुच्छेद-280 एवं 281 में की गई है।
राजकोषीय संघवाद को संतुलित करने के लिये वित्त आयोग के निम्नलिखित कर्त्तव्य निर्धारित किये गए हैं:
वस्तुत: वित्त आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी प्रकृति की नहीं हैं क्योंकि सरकार इन्हें मानने के लिये बाध्य नहीं है। परंतु अनुच्छेद-281 में व्यवस्था है कि राष्ट्रपति संविधान के उपबंधों के तहत वित्त आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगा। उसे सिफारिश के साथ स्पष्टीकरण ज्ञापन भी रखवाना होगा कि प्रत्येक सिफारिश के संबंध में क्या कार्रवाई की गई है।
इस प्रावधान से वित्त आयोग की सिफारिशों को अस्वीकार करना सरकार के लिये मुश्किल हो जाता है। क्योंकि कोई सिफारिश किस आधार पर खारिज़ हुई इसका जवाब सदन में देना पड़ेगा।
निष्कर्षत: कह सकते हैं कि वित्त आयोग की प्रकृति भले ही सलाहकारी की हो परंतु उसकी सिफारिशों को स्वीकार करना सरकार के लिये सामान्यत: आवश्यक हो जाता है। इस तरह राजकोषीय संघवाद को संतुलित करने के वह अपने कर्त्तव्यों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रहा है।
संबंधित स्रोत : लक्ष्मीकान्त, इंटरनेट, योजना और कुरूक्षेत्र।