क्या आप मानते हैं कि मूल कर्त्तव्य कानूनी बाध्यता एवं न्यायिक प्रवर्तनीयता के अभाव में एक खोखला दस्तावेज़ बनकर रह गए हैं? वर्मा समिति की संस्तुतियों के आधार पर अपने मत की विवेचना करें।
08 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
प्रश्न विच्छेद • मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति का उल्लेख करें। • वर्मा समिति की सिफारिश। हल करने का दृष्टिकोण • मूल कर्त्तव्यों का परिचय दें। • मूल कर्त्तव्यों को खोखला बताने का कारण बताएँ। • वर्मा समिति की प्रमुख सिफारिशों का उल्लेख करें। • अंत में निष्कर्ष के रूप में अपना मत दें। |
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर 42वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 51A के तहत मौलिक कर्त्तव्य शामिल किये गए।
मौलिक कर्त्तव्यों को देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने तथा भारत की एकता को बनाए रखने के लिये भारत के सभी नागरिकों के नैतिक दायित्वों के रूप में परिभाषित किया गया है। वर्तमान में मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या 11 है।
वस्तुत: मौलिक कर्त्तव्यों को मूल अधिकारों के समान न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं बनाया गया है, अर्थात् इनके हनन के खिलाफ कोई संस्तुति नहीं है। इसलिये कुछ आलोचकों द्वारा इसे खोखला दस्तावेज़ के रूप में माना जाता है।
वर्मा समिति ने कुछ मूल कर्त्तव्यों की पहचान एवं उनके क्रियान्वयन के लिये कानूनी प्रावधानों को लागू करने की व्यवस्था की, जैसे:-
वस्तुत: मूल कर्त्तव्य केवल खोखला दस्तावेज़ नहीं है बल्कि यह नागरिकों के लिये प्रेरणा के स्रोत एवं सचेतक के रूप में कार्य करते हैं, आवश्यकता है मूल कर्त्तव्यों के संदर्भ में अधिक-से-अधिक जागरूकता बढ़ाने की, जिससे ज़िम्मेदार समाज का निर्माण हो सके।
संबंधित स्रोत : लक्ष्मीकांत, इंटरनेट, योजना और कुरूक्षेत्र।