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प्रश्न :
कृषि के सहायक क्षेत्रों में मूल्यवर्द्धन एवं व्यावसायिक दक्षता का अभाव, न केवल भारतीय कृषि के पुनरुद्धार में अवरोधक सिद्ध हो रही है, अपितु यह खाद्य एवं पोषण असुरक्षा सहित सामाजिक-आर्थिक विकास की गति को भी मंद किये हुए है। व्याख्या करें।
06 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
कृषि के सहायक क्षेत्रों में मूल्यवर्द्धन के लाभ तथा चुनौतियों की चर्चा करनी है।
हल करने का दृष्टिकोण
कृषि के सहायक क्षेत्रों का परिचय देते हुए उत्तर प्रारम्भ करें।
इन क्षेत्रों में मूल्यवर्द्धन एवं व्यावसायिक दक्षता की संभावना बताइये।
चुनौतियाँ और समाधान प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष लिखें।
कृषि और उसके सहायक क्षेत्रों को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार माना जाता है। ये कच्चे माल का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और कई औद्योगिक उत्पादों, विशेषकर उर्वरक, कीटनाशक, कृषि उपकरण और विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं की मांग के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। ये क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 22 प्रतिशत योगदान करते हैं। कृषि और उसके सहायक क्षेत्रों को कई उप क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। जैसे-बागवानी, मत्स्य पालन, पशुपालन एवं पशुधन और रेशम उत्पादन आदि। भारत की विभिन्न कृषि जलवायु परिस्थितियों में ये बड़ी संख्या में बागवानी फसलों के विकास के लिये अनुकूल हैं। भारत विश्व में फलों एवं सब्ज़ियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यह चीन के बाद पूलों का भी दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही यह मसालों और चाय, कॉफी आदि के लिये भी अग्रणी उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है। रेशम कृषि आधारित कुटीर उद्योग है और भारत विश्व में रेशम उत्पादन में द्वितीय स्थान पर है।
इस रूप में कृषि और उसके सहायक क्षेत्र देश में रोज़गार सृजन, कच्चे माल की उपलब्धता और कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता आदि के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। ये देश के कृषि निर्यात को बढ़ाकर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में भी महत्त्वपूर्ण हैं।
इन्हीं संभावनाओं के पूर्ण दोहन हेतु कृषि मंत्रालय मुख्य प्राधिकरण है। यह कृषि एवं उसके सहयोगी विभाग द्वारा क्षेत्र के विकास के लिये विभिन्न योजनाएँ लागू करता है। किंतु कृषकों में जागरूकता का अभाव, नवीन तकनीकों के प्रति उदासीनता, मशीनीकरण की न्यूनता, निवेश का अभाव, खाद्य शृंखलाओं में प्रबंधकीय दक्षता एवं सहायता का अभाव आदि समस्याओं के कारण इन क्षेत्रों में पर्याप्त मूल्यवर्द्धन नहीं हो पाया है।
फिर भी कृषि मंत्रालय अपने संबद्ध एवं सहयोगी विभागों के द्वारा मत्स्य प्रसंस्करण के साथ-साथ फलों और सब्ज़ियों के प्रसंस्करण के क्षेत्र में भी उद्यमी गतिविधियों को बढ़ावा देने में सक्रिय है। इसके अलावा, क्रमश: चाय, कॉफी, रबर, औषधीय पौधों जैसे क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देने के लिये कमोडिटी बोर्ड, चाय बोर्ड, कॉफी बॉर्ड, ई-नाम, आदि की स्थापना की गई है।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि कृषि और संबंद्ध क्षेत्रों में असंख्य व्यावसायिक अवसर मौजूद हैं। समस्त विश्व से निवेशक अपनी मौजूदा क्षमता में वृद्धि करने के साथ-साथ अप्रयुक्त क्षेत्रों की तलाश के लिये इस क्षेत्र में भारी निवेश कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, कृषकों को जागरूक करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं जिससे कृषि और सहायक क्षेत्रों में निहित संभावनाओं का पूर्ण दोहन किया जा सके।
संबंधित स्रोत: इंटरनेट, द हिन्दू योजना और कुरूक्षेत्र।
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