भारत में चुनावी वर्ष नज़दीक आते ही राजनीतिक पार्टियाँ सत्ता में आने के लिये लोक-लुभावनी घोषणाएँ करने लगती हैं, जैसे मुफ्त में बिजली-पानी, लैपटॉप, साइकिल आदि देने के वायदे करना आदि। यह प्रचलन लोकतंत्र में चुनाव लड़ने के लिये सभी को समान अवसर मिलने के मूल्य के उल्लंघन को तो दर्शाता ही है, साथ ही सत्ता में आने पर जब सरकार नागरिकों के कर से निर्मित ‘लोकनिधि’ से ही अपने वायदे पूरे करती है, तो निधि के इस दुरुपयोग से विकास की गति भी धीमी पड़ती है। तर्क सहित उत्तर लिखें।
23 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण:
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भारतीय राजनीति में यह सामान्य तौर पर देखा गया है कि जब चुनाव नज़दीक आते हैं तब विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ अपना-अपना ‘घोषणा-पत्र’ जारी करती हैं। इस घोषणा-पत्र में उन पार्टियों की भावी योजनाएँ और वायदे लिखे होते हैं। घोषणा-पत्र जारी करना चुनाव आचार संहिता के अनुकूल है। परंतु, समय के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियाँ इस अधिकार का दुरुपयोग करने लगी हैं। नियमों के अनुसार, घोषणा-पत्रों में नीतिगत योजनाएँ सम्मिलित होनी चाहिये जैसे अमुक पार्टी सत्ता में आई तो उसकी शिक्षा और रोजगार को लेकर ‘ऐसी’ नीति होगी आदि।
वर्तमान में यह चलन हो गया है कि राजनीतिक पार्टियाँ वोटरों को लुभाने के लिये मुफ़्त उपहारों की घोषणा करने लगी हैं। जैसे- यदि हम सत्ता में आए तो टेलीविज़न मुफ़्त देंगे या लैपटॉप या बिजली के बिल माफ कर देंगे आदि। सत्ताधारी पार्टी या बड़ी राजनीतिक पार्टियों की ऐसी घोषणा किसी स्वतंत्र उम्मीदवार के ‘चुनाव में समान अवसर के अधिकार’ का सीधा उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस संबंध में चुनाव आयोग को उचित दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया है।
दूसरा मुद्दा यह है कि मुफ़्त उपहारों के वायदे पूरे करने के लिये सत्ता में आई पार्टी ‘लोकनिधि’ पर अनावश्यक भार डालती है और जो पैसा पूंजी निर्माण में लगना चाहिये था, उससे मुफ़्त उपहार या सब्सिडी दी जाती है। यह सत्य है कि जनता के पैसे से जनता के लिये ही ऐसा किया जा रहा है परंतु यह मुफ़्तखोरी अन्ततः लोकतंत्र के लिये ही घातक होती है।