पाश्चात्य जगत के लिये स्वामी विवेकानंद भारत के पहले सांस्कृतिक राजदूत थे, जिन्होंने भारत के सांस्कृतिक एकीकरण में अतुल्य योगदान दिया। विवेचना कीजिये।
04 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिप्रश्न विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कोलकाता में हुआ था। स्वामी जी का मूल नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, जिसे कालांतर में श्री रामकृष्ण परमहंस ने बदलकर विवेकानंद कर दिया। स्वामी जी ने अपनी भारत यात्रा में भारत में व्याप्त भुखमरी और गरीबी को देखा। वह पहले ऐसे नेतृत्वकर्त्ता थे जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त गरीबी और भुखमरी की मुखर आलोचना की थी।
1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भाग लेना स्वामी जी के जीवन तथा उनके उद्देश्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण चरण था। इसी संसद में दिये गए भाषण ने उन्हें पाश्चात्य जगत् का प्रथम सांस्कृतिक दूत बना दिया। इसे निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है:
इस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने भारत का अन्य विश्व के देशों के साथ सांस्कृतिक अलगाव समाप्त करने का प्रयास किया। वह भारत के प्रथम सांस्कृतिक राजदूत बनकर पाश्चात्य जगत् गए। इसके अतिरिक्त, भारत के सांस्कृतिक एकीकरण में भी विवेकानंद का अभूतपूर्व योगदान है। जैसे-
इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानंद ने पाश्चात्य जगत् में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार तो किया ही, स्वयं के अकाट्य प्रयासों से भारत का सांस्कृतिक एकीकरण भी किया।