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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘जैविक ऊर्जा’ देश की ऊर्जा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, फिर भी बहुविध कारणों से भारत में जैविक ऊर्जा का उत्पादन इसकी विद्यमान क्षमता से काफी निम्नतर है। विवेचना करें।

    02 Feb, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • भारत में जैविक ऊर्जा उत्पादन एवं संबंधित चुनौतियों पर चर्चा करनी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • ‘जैविक ऊर्जा’के संक्षिप्त परिचय से उत्तर प्रारम्भ करें।
    • भारत में जैविक ऊर्जा उत्पादन की स्थिति को बताइये।
    • जैविक ऊर्जा उत्पादन में आने वाली चुनौतियाँ स्पष्ट करते हुए निष्कर्ष लिखें।

    फसलों, पौधों, पेड़ों, जंतु एवं मानव मल आदि जैविक तत्त्वों में निहित ऊर्जा को जैविक ऊर्जा कहते हैं। इनका प्रयोग करके ऊष्मा, विद्युत और गतिज ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। धरातल पर विद्यमान सम्पूर्ण वनस्पति और जंतु पदार्थ को ‘बायोमास’ कहते हैं।

    वर्तमान में भारत में जैविक ऊर्जा संयंत्रों की कुल उत्पादन क्षमता लगभग 4700 मेगावॉट है। जैविक ऊर्जा परियोजनाओं से होने वाले अनेक लाभों के बावजूद कई जैविक ऊर्जा परियोजनाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। यह विशेषकर जैविक ऊर्जा की लागत में वृद्धि के कारण हुआ है। वहीं, जैविक ऊर्जा पर लगने वाले करों को जैविक ऊर्जा की बढ़ती लगात के अनुरूप संशोधित नहीं किया गया है। इसके चलते वर्तमान में अनेक वित्तीय संस्थान जैविक ऊर्जा परियोजनाओं में धन लगाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

    जैविक ऊर्जा का वितरण करने वाली कंपनियों ने भी सक्रिय भूमिका नहीं निभाई है। इस क्षेत्र की उन्नति के लिये ये कंपनियाँ भी सक्रिय और उत्साहजनक भूमिका निभा सकती हैं। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने स्थिति में सुधार के लिये राज्य बिजली नियामक आयोगों से केंद्रीय बिजली नियामक आयोग द्वारा हाल ही में अधिसूचित किये गए संशोधित नियमों का संज्ञान लेने की अपील की है, जिससे इसका लाभ जैविक ऊर्जा के उत्पादकों तक पहुँचाया जा सके। इस संबंध में केंद्रीय बिजली नियामक आयोग ने कुछ महत्त्वपूर्ण मानदण्डों की दरों को स्वीकृति दी है और ईधन के दामों में स्वतंत्र सर्वेक्षण पर आधारित वार्षिक संशोधन करने की सिफारिश भी की है। इसके अलावा, मंत्रालय ने जैविक ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों के शीघ्र समाधान के प्रयास प्रारम्भ कर दिये हैं।

    इसके अतिरिक्त, एम.एन.आर.ई. बायोमास एवं सह-उत्पादन परियोजनाओं के लिये पूंजी सब्सिडी भी उपलब्ध करा रही है। इरेडा द्वारा बायोमास और सह-उत्पादन परियोजनाओं के लिये कुल परियोजना लागत का 70% तक वित्तीयन किया जा रहा है। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र तथा कुछ अप्रीकी राष्ट्रों के साथ भी भारत सरकार ने जैविक ऊर्जा उत्पादन के लिये MoU पर हस्ताक्षर किये हैं।

    निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है यद्यपि तकनीकी, वित्तीय और संरचनात्मक समस्याओं के चलते भारत बायोमास ऊर्जा की अपनी कुल संभावनाओं का दोहन नहीं कर पा रहा है, फिर भी सरकार अपने स्तर पर निंरतर प्रयास कर रही है। आम जनता की भागीदारी भी इन प्रयासों में अपरिहार्य है जिससे सरकार के इन प्रयासों को प्रोत्साहन दिया जा सके।

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