‘ग्रीष्मकालिक मानसून’ के पूर्वानुमान की विधियाँ किस सीमा तक सफल सिद्ध हुई हैं? ‘भारतीय मौसम विभाग’ द्वारा विकसित मानसून के पूर्वानुमान की अद्यतन विधियों पर प्रकाश डालें।
31 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी
प्रश्न विच्छेद प्रथम भाग ग्रीष्मकालीन मानसून के पूर्वानुमान की सफलता से संबंधित है। द्वितीय भाग वर्तमान में प्रचलित पूर्वानुमान की विधियों से संबंधित है। हल करने का दृष्टिकोण ग्रीष्मकालीन मानसून का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर प्रारम्भ करें। मानसून पूर्वानुमान की प्रचलित विधि/विधियाँ बताइये। वर्तमान में प्रचलित विधियों का परिचय देते हुए निष्कर्ष लिखें। |
ग्रीष्मकालीन मानसून, दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया में घटने वाली विशिष्ट जलवायविक परिघटना है। अप्रैल और मई के महीनों में जब सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है तो हिंद महासागर के उत्तर में स्थित विशाल भू-खंड अत्यधिक गर्म हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग पर एक गहन न्यूनदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। चूँकि भूखंड के दक्षिण में महासागरीय क्षेत्र अपेक्षया धीरे-धीरे गर्म होता है, अत: यह निम्नदाब का क्षेत्र विषुवत् रेखा के दक्षिण से दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी पवनों को आकर्षित करता है। इन परिस्थितियों में अंत:उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र उत्तर की ओर स्थानांतरित हो जाता है। इस प्रकार दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी पवनें विषुवत् रेखा को पार करने के पश्चात् दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवन के रूप में विस्तृत हो जाती हैं। इसे ही ग्रीष्मकालीन मानसून कहते हैं।
भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून का अधिक महत्त्व है क्योंकि भारतीय कृषि का वृहद् भाग इस पर निर्भर है। इसलिये मानसून पूर्वानुमान भारत में और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। विज्ञान की भाषा में पूर्वानुमान का अर्थ भविष्य के लिये कुछ चरों में परिवर्तनीयता का अनुमान लगाने से होता है। राष्ट्रीय मौसम सेवा के अनेक कार्यों में से ग्रीष्मकालीन मानसून का पूर्वानुमान लगाना भी एक है। वर्तमान में मानसून-पूर्वानुमान की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं, जिनमें तीन प्रमुख हैं-(1) लघु अवधि मानसून पूर्वानुमान, (2) मध्यम अवधि मानसून पूर्वानुमान और (3) दीर्घ अवधि मानसून पूर्वानुमान।
लघु अवधि मानसून पूर्वानुमान, 72 घण्टों तक के मौसम का पूर्वानुमान करता है। मध्यम अवधि मानसून पूर्वानुमान, 4 से 10 दिनों तक के लिये वैध होता है। इसमें प्रतिदिन के मौसम का औसत लघु अवधि विधि की तुलना में अधिक सटीक होता है। दीर्घ अवधि मानसून पूर्वानुमान में 30 दिनों से लेकर एक ऋतु तक के मौसम का पूर्वानुमान होता है। इसके अतिरिक्त विस्तृत अवधि पूर्वानुमान की विधि भी प्रचलित है जो मध्यम और लघु अवधि पूर्वानुमान के मध्य अवस्थित है। इसमें 10 दिनों तक के मौसम का पूर्वानुमान किया जाता है।
वर्तमान में तकनीकी उन्नयन और मौसमी उपग्रहों की उपलब्धता ने देश में मौसम पूर्वानुमान की विधियों में परिवर्तन किया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने घोषणा की है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ‘गतिशील मानसून मॉडल’ पर आधारित विधि के द्वारा सुपर कंप्यूटर से मानसून का पूर्वानुमान करेगा। इस मॉडल को युग्मित पूर्वानुमान प्रक्रिया प्रकार (Version-2) भी कहा जाता है। किंतु इस मॉडल को अधिकांशत: लघु अवधि की जाँच के लिये ही अपनाया जाता है और दीर्घ अवधि पूर्वानुमान के लिये यह विधि 60% तक ही सटीक रही है।
इस प्रकार, निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि ग्रीष्मकालीन मानसून के सामाजिक और आर्थिक महत्त्व को देखते हुए सटीक पूर्वानुमान की अनेक विधियाँ अपनाई जा रही हैं तथा इसे और अधिक सटिक बनाने के लिये भारत सरकार एवं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग निरंतर प्रयासरत हैं।