स्वतंत्रता उपरांत देश के राजनीतिक एकीकरण की प्राप्ति के बावजूद आर्थिक एकीकरण का स्वप्न अधूरा है। इसकी पूर्ति हेतु देश में लागू जीएसटी की सफलता और कमियों का मूल्यांकन करें।
30 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
संविधान संशोधन, एक समान कानून एवं अनुपालन के लिये नियम तैयार करने और सुदृढ़ सूचना प्रौद्योगिकी आधारित पोर्टल के निर्माण संबंधी चुनौतियों को पार करके देश में 1 जुलाई, 2017 से जीएसटी प्रणाली लागू कर दी गई और इसके साथ ही आर्थिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हो गया।
विषय वस्तु के पहले भाग में हम जीएसटी की सफलता पर चर्चा करेंगे।
विश्व के सबसे बड़े कर सुधार को लागू हुए, 2019 को 2 वर्ष पूरे हो जाएंगे। इसके साथ ही अब इसके अनुभवों की विस्तृत समीक्षा की ज़रूरत महसूस की जा रही है। समीक्षा करने पर हम पाते हैं कि इस दिश में सबसे बड़ी कामयावी ‘एक देश एक कर’ के सपने का साकार होना माना जा रहा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में एकरूपता स्थापित हो गई है। जिसके कारण वितरण व्यवस्था, उत्पादन, आपूर्ति शृंखला और भंडारण व्यवस्था में दुरूस्तता आई है। ‘एक देश एक कर’ प्रणाली के कारण देश ‘एकल राष्ट्रीय बाज़ार’ में परिवर्तित हो गया है। अलग-अलग राज्यों में वस्तुओं और सेवाओं की अलग-अलग कीमतों के कारण भ्रष्टाचार के कई रास्ते अब जीएसटी के कारण बंद हो गए हैं।
जीएसटी की एक अन्य बड़ी कामयाबी यह है कि इसके कार्यान्वयन से अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण हो रहा है। इसके कारण देश में कर आधार का तेजी से विस्तार हुआ है। इसके अलावा, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के अंशदाताओं की संख्या में वृद्धि भी यह सिद्ध करती है कि अर्थव्यवस्था में संगठित क्षेत्र का दायरा बढ़ रहा है। तीसरी बड़ी बात यह है कि भारत में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में जीएसटी के कारण कोई अप्रत्याशित वृद्धि जैसी बात देखने को नहीं मिली और न ही मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई।
चौथी उपलब्धि के तहत हम पाते हैं कि इस व्यवस्था से व्यापक स्तर पर आँकड़ों का भंडारण हो रहा है जो नीति-निर्माण में बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। पांचवी उपलब्धि के तौर पर हम देखते हैं कि इसके क्रियान्वयन के फलस्वरूप ‘इंस्पेक्टर राज’ को सूचना प्रौद्योगिकी से प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम जीएसटी की कमियों पर चर्चा करेंगे-
जीएसटी प्रणाली की ढेर सारी उपलब्धियों के बीच अभी इसमें कुछ कमियाँ भी बरकरार हैं जिनका निराकरण आवश्यक है। हम पाते हैं कि इस व्यवस्था में तकनीकी स्तर पर अभी भी चुनौतियाँ बरकरार है। एकतरफ जहाँ छोटे और मझैले उद्यमियों और उद्योगों के डिजिटाइजेशन को बढ़ावा देने की ज़रूरत है वहीं दूसरी तरफ रिटर्न के मौजूदा तंत्र की प्रक्रिया को तकनीकी तौर पर समग्रता की ओर ले जाने की आवश्यकता है। इसी प्रकार हम देखते हैं कि रजिस्ट्रेशन सिस्टम की जटिलता अभी भी बनी हुई है। जीएसटी प्रणाली की कमियों की शृंखला में एक नई समस्या नए सेस का लागू होना भी है। लग्जरी गुड्स पर कॉम्पेन्सेशन सेस एवं ऑटोमोबाइल में सेस लागू करने को जीएसटी के मूल सिद्धांत के विपरीत माना जा रहा है। इन कमियों के अतिरिक्त एक और बड़ी मुश्किल निर्यातकों को मिलने वाले रिफंड से जुड़ी हुई है। रिफंड समय से न होने पर निर्यातकों की एक बड़ी पूंजी फँसी रहती है जिससे वे तरलता की कमी से जूझते रहते हैं।
आगे की राह
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
जीएसटी प्रणाली के निष्पादन के मूल्यांकन का सबसे बेहतर तरीका यही है कि सरकार, उद्योगों और उपभोक्ताओं के स्तर पर इसके प्रभाव की जाँच की जाए। हालाँकि भारत जैसे विशाल जनसंख्या और विभिन्न प्रकार की विविधताओं वाले देश में किसी नई कर व्यवस्था को स्थिर होने में वक्त लगेगा, फिर भी नीति-निर्माताओं की कोशिश होनी चाहिये कि यथाशीघ्र ‘गुड्स एवं सर्विसेज टैक्स’ को ‘गुड एंड सिंपल टैक्स’ में बदल दिया जाए।