अमूमन देखा जाता है कि अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में ताकतवर चक्रवाती तूफान दुर्लभ ही उत्पन्न होते हैं। बंगाल की खाड़ी में ‘तितली’ और अरब सागर में ‘लुबान’ नामक चक्रवाती तूफानों की उत्पत्ति के कारणों की विवेचना के साथ-साथ चक्रवातों के नामकरण की पद्धति पर भी प्रकाश डालें।
29 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज आँधी को चक्रवात कहा जाता है। दोनों गोलार्द्धों के चक्रवाती तूफानों में अंतर यह है कि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में तथा दक्षिण गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा में चलते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता जाता है।
आमतौर पर अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में चक्रवाती तूफान दुर्लभ की उत्पन्न होते हैं। इसके बावजूद अरब सागर में तीव्र चक्रवात ‘लुबान’ को सक्रिय रूप में देखा गया, हालाँकि इसने भारत के किसी भी तट को प्रभावित नहीं किया जबकि ‘तितली’ चक्रवात ओडिशा और उत्तरी आंध्र प्रदेश के तटों पर टकराया था।
इन चक्रवातों की उत्पत्ति का कारण सक्रिय अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) का दक्षिण की तरफ खिसकना माना जा रहा है। समुद्र में हलचल के पीछे भी यही मुख्य कारक था। दोनों चक्रवात इस ITCZ के ही उपशाखा थे। इसके अलावा, मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (MJO) का हिन्द महासागर के निकट होना भी इसकी उत्पत्ति के कारणों में से एक माना जा रहा है।
ITCZ पृथ्वी पर, भूमध्यरेखा के पास वह वृत्ताकार क्षेत्र हैं, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों की व्यापारिक हवाएँ, यानि पूर्वोत्तर व्यापारिक हवाएँ तथा दक्षिण-पूर्व व्यापारिक हवाएँ एक जगह मिलती हैं। भूमध्यरेखा पर सूर्य का तीव्र तापमान और गर्म जल ITCZ में हवा को गर्म करते हुए इसकी आर्द्धता को बढ़ा देते हैं जिससे यह उत्प्लावक बन जाता है। व्यापारिक हवाओं के अभिसरण के कारण यह ऊपर की तरफ उठने लगता है। ऊपर की तरफ उठ कर हवा के फैलने से यह ठंडी हो जाती है, जिससे भयावह आंधी तथा भारी बारिश होती है।
मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन उष्णकटिबंधीय परिसंचरण और वर्षा में एक प्रमुख उतार-चढाव है जो भूमध्यरेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ता है तथा 30-60 दिनों की अवधि में पूरे ग्लोब की परिक्रमा कर लेता है। इसलिये MJO हवा, बादल और दबाव की एक चलती हुयी प्रणाली है। यह जैसे ही भूमध्यरेखा के चारों ओर घूमती है, वर्षा की शुरूआत हो जाती है।
हिन्द महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाइलैण्ड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं। चक्रवातों के इन आठ देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचने पर सूची से अलग या दूसरा सुलभ नाम इस नए चक्रवात को दिया जाता है। इस प्रक्रिया के कारण तूफान को आसानी से पहचाना जा सकता है और बचाव अभियानों में भी मदद मिलती है। किसी भी नाम का दोहराव नहीं होता। भारत में नामकरण करने वाला यह शासी निकाय क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र (RSMC), नई दिल्ली में स्थित है। वर्ष 2004 से चक्रवातों को RSMC द्वारा अनुमोदित सूची के अनुसार नामित किया जाता है।
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-