राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) की शक्तियों पर अंकुश लगाने के दृष्टिकोण से नीति आयोग की अध्यक्षता में स्थायी समिति का गठन क्या बाज़ार में दवाओं की उपलब्धता पर प्रभाव डालेगा? परीक्षण कीजिये।
28 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
नीति आयोग के तहत दवाओं के मूल्य नियंत्रण के संबंध में गठित समिति अब दवाओं का मूल्य नियंत्रण करेगी। जिसका निर्धारण पहले राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल्स मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) द्वारा किया जाता था।
विषय-वस्तु के पहले भाग में हम स्थायी समिति के गठन पर चर्चा करेंगे-
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा सस्ती दवाओं और स्वास्थ्य उत्पादों पर एक स्थायी समिति के गठन की घोषणा की गई जिसमें नीति आयोग के साथ-साथ वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार एवं फार्मास्युटिकल्स आदि से संबंधित विशेषज्ञों को मिलाकर कुल 7 व्यक्ति शामिल किये जाएंगे ।इस समिति के गठन द्वारा सरकार चाहती है कि ‘राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण’ सिर्फ दवाओं के मूल्यों की निगरानी, उनकी उपलब्धता और उनके सुगम पहुँच को सुनिश्चित करने तक केंद्रित रहे एवं दवाओं के मूल्य नियंत्रण संबंधी निर्णय को सलाहकारी निकाय पर छोड़ दिया जाए। यह नवीनतम निर्देश सरकार के उस बहुप्रतीक्षित प्रस्ताव का ही भाग है जिसके तहत दवाओं की मूल्य संबंधी नीति में संशोधन करना और विशेषज्ञों की एक सलाहकार निकाय को शामिल करना था।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में इस समिति के गठन के पीछे निहितार्थ कारणों एवं इस संबंध में आयी प्रतिक्रियाओं पर प्रकाश डालेंगे-
सरकार के इस फैसले से हेल्थकेयर कार्यकर्त्ताओं ने नाराज होते हुए यह आरोप लगाया कि सरकार ड्रग प्राइस रेगुलेटर की शक्तियों को कम करने की कोशिश कर रही है। कुछ का मानना है कि यह NPPA की शक्तियों को छीनने की कोशिश है जो कि सही नहीं है क्योंकि NPPA अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा रहा था। उन्होंने कहा कि इसका प्रमाण है NPPA के कुछ योग्य अध्यक्षों द्वारा समय-समय पर लिये गए विभिन्न लोकोपकारी निर्णय, जिसके तहत कार्डियक स्टंट के मूल्य में कमी लाते हुए इसे ढाई लाख से तीस हज़ार तक ले आया गया। ऐसा ही कुछ ऑर्थोपेडिक घुटने के प्रत्यारोपण में भी देखने को मिला था।
हालाँकि कुछ दवा उद्योगों ने सरकार के इस आदेश का स्वागत किया है जिसके तहत स्थायी समिति, दवाओं के मूल्य विनियमन में NPPA को सलाह देगी। वहीं कई लोगों को यह भय है कि सरकार इसके तहत दवा उद्योगों को फायदा पहुँचाना चाहती है और इससे बाज़ार में दवाओं की उपलब्धता पर भी असर पड़ेगा। परंतु वास्तविकता में यह न तो उद्योगों के पक्ष में होगा और न हीं इस प्रकार के किसी उद्योग के विकास को प्रोत्साहन दिया जाएगा। बल्कि इससे दवाओं के मूल्य नियंत्रण संबंधी निर्णय लेने में संतुलन स्थापित होगा और उद्योगों को किसी एक व्यक्ति यथा एनपीपीए अध्यक्ष के भरोसे छोड़ा नहीं जाएगा। अब दवाओं की एक नवीन सूची तैयार की जाएगी और उस पर नये तरीके से मूल्यों का निर्धारण किया जाएगा। इससे इस सूची के तहत आने वाली आवश्यक दवाओं के मूल्य में कमी आएगी और साथ ही यह सूची नए दवाओं को शामिल करने के कारण वर्तमान से ज़्यादा विस्तृत भी होगी।
वही दूसरी तरफ हम पाते है कि फार्मा लॉबी पहले से यह कहती आ रही है कि दवाओं को वहनयुक्त बनाने के क्रम में दवाओं की कीमत में गिरावट आती है। इससे जाहिर है कि NPPA जिस प्रकार दवाओं के मूल्य का निर्धारण करता था उस पर लोगों को असंतोष था। साथ ही देखा गया है कि आवश्यक दवाओं के मूल्य में समय-समय पर संशोधन भी नहीं किया तया है।
पिछले घटनाक्रमों से पता चलता है कि भारतीय दवा उद्योग तत्कालीन NPPA अध्यक्ष के उस निर्णय से नाराज थे जिसके तहत ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) 2013 के पैराग्राफ 19 के तहत प्रदत्त, विशेष शक्ति का प्रयोग कर कई ड्रग फॉर्म्यूलेशन की कीमतों में गिरावट की गयी थी जो राष्ट्रीय सूची के आवश्यक दवाओं (NLEM) के भाग नहीं थे।
जबकि पैराग्राफ 19 का प्रयोग सिर्फ असधारण परिस्थितियों के अंतर्गत ही किया जाता है। क्योंकि पैराग्राफ 19 सिर्फ कुछ स्वास्थ्य आकस्मिकता के लिये ही शक्तियाँ प्रदान करता है। इसी के मद्देनजर इसके दुरूपयोग का आरोप लगाया गया है। इस नए आदेश से अब इसका दुरूपयोग नहीं किया जा सकेगा। इस निर्देश से दूसरा महत्त्वपूर्ण बदलाव यह आएगा कि अब समिति यह विचार कर सकेगी है कि NLEM के तहत आने वाली प्रत्येक दवा का नियंत्रण आवश्यक है या नहीं। इससे पहले यह विचार करने का अधिकार किसी निकाय के पास नहीं था। इस निर्देश के तहत बायोमेडिकल डिवाइसेज, फार्मास्युटिकल्स एवं बायोटेक्नोलॉजी में आगंतुक सदस्य के तौर पर विशेषज्ञों को बुलाया जाएगा, जिनका संख्या फिलहाल निर्धारित नहीं की गई है।
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-
NPPA, जो NLEM के तहत आने वाले उपकरणों और दवाओं की कीमतों को निर्धारित करता है, की यह चिंता कि वहन योग्य दवाओं और स्वास्थ्य उत्पाद पर स्थायी समिति के गठन द्वारा सरकार उसकी शक्तियों में कटौती कर रही है, सही नहीं है। साथ ही यह कहना भी गलत होगा कि इससे दवाओं की बाज़ार में उपलब्धता पर असर पड़ेगा। दरअसल इस पहल के द्वारा सरकार की यह कोशिश है कि सभी हितधारकों का ध्यान रखते हुए आवश्यक दवाओं के मूल्य में कमी आए और उनकी उपलब्धता में वृद्धि हो।