लोकदृष्टि से शिव की नटराज मूर्ति को शास्त्रीय नृत्य का प्रतीक मानना इस बात का साक्ष्य है कि भारतीय नृत्यकला का विकास धर्म एवं दर्शन से हुआ है। भरतनाट्यम नृत्य के केंद्र में नटराज मूर्ति एवं मोहनीअट्टम नृत्य के केंद्र में विष्णु की प्रधानता स्वीकार करते हुए इन दोनों नृत्यों की विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
24 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति
नृत्य ईश्वर एवं मनुष्य के आपसी प्रेम को दर्शाता है। भारतीय परंपरा में नृत्यकला के दो अंग स्वीकार किये गए हैं- तांडव तथा लास्य। तांडव नृत्य में संपूर्ण खगोलीय रचना एवं इसके विनाश की एक लयबद्ध कथा को नृत्य के रूप में दर्शाया गया है। जबकि लास्य नृत्य का आरंभ देवी पार्वती से माना जाता है।
विषय वस्तु के पहले भाग में हम नटराज मूर्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालेंगे।
तांडव नृत्य में दो भंगिमाएँ होती है- रौद्र रूप एवं आनंद प्रदान करने वाला रूप। रौद्र रूप काफी उग्र होता है और इसे करने वाले रूद्र कहलाए। जबकि तांडव का दूसरा रूप आनंद प्रदान करने वाला है जिसे करने वाले शिव ‘नटराज’ कहलाए। इस रूप में तांडव नृत्य का संबंध सृष्टि के उत्थान एवं पतन दोनों से है। लास्य नृत्य की मुद्राएँ बेहद कोमल, स्वभाविक एवं प्रेमपूर्ण होती हैं तथा इसमें जीवन के श्रृंगारिक पक्षों को विभिन्न प्रतीकों व भावों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
नटराज, शिव का दूसरा नाम माना जाता है। वस्तुत: नटराज के रूप में शिव एक उत्तम नर्तक तथा सभी कलाओं के आधार स्वरूप हैं। माना जाता है कि शिव के आनंदरूपी तांडव से ही सृष्टि का उत्थान हुआ है तथा उनके इस मनमोहक स्वरूप की अनेक व्याख्याएँ हैं। नटराज की मूर्ति में नृत्य के हाव-भाव एवं मुद्राओं का समावेश है। शास्त्रीय नृत्य मूल रूप से शास्त्रीय पद्धति पर आधारित है। भारतीय नृत्य परंपरा में शास्त्रीय नृत्य की चार शैलियाँ प्रचलित थी- भरतनाट्यम, कथकली, कथक एवं मणिपुरी। बाद में कुचिपुड़ी एवं ओडिसी को मान्यता मिली। उसके बाद मोहिनीअट्टम एवं अंत में सत्रिया को शास्त्रीय नृत्य की मान्यता मिली।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में भरतनाट्यम और मोहनीअट्टम की विशेषताओं पर चर्चा करेंगे-
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-