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प्रश्न :
दो समुद्री लोकतंत्रों यथा भारत और जापान के स्वतंत्रता और समृद्धि आयामों का विस्तार दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया और अप्रीका जैसे क्षेत्रों के लिये एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करेगा जहाँ चीनी प्रभाव में लगातार तेज़ी आ रही है। समीक्षा कीजिये।
23 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
भूमिका:
जापान को आर्थिक, रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत का एक स्वाभाविक और अपरिहार्य भागीदार माना जा सकता है। जापान और भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र के दो उत्कृष्ट लोकतांत्रिक देश माने जाते हैं।विषय-वस्तु
लोकतंत्र की प्रकृति ही वह कारण है, जो जापान और भारत को प्रेरित करने का कार्य करता है, क्योंकि उन्हें क्रमश: समान रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के रूप में तेजी से बढ़ती ताकत का सामना करना पड़ रहा है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी केंद्रीयता के सामने किसी भी तरह का विवाद नहीं चाहता है। समकालीन वैश्विक व्यवस्था में भारत-जापान के संबंध, इस क्षेत्र के बदलते राजनीतिक, आर्थिक परिदृश्य और वैश्विक राजनीति की प्रकृति में अंतर्निहित हैं। भारत और जापान के वैश्विक दृष्टिकोण समान है और वे पश्चिम के साथ निकटस्थ सैन्य संबंध स्थापित करना चाहते हैं। दोनों ही देश चीन को एक ऐसी उभरती हुई विश्व शक्ति के रूप में देखते हैं, जिसे संतुलित किये जाने की आवश्यकता है।दोनों देशों ने अपने संबंधों की परिधि में विस्तार देते हुए विभिन्न आयामों को शामिल किया है जिसमें द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, बहुपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर व्यापक राजनीतिक समन्वय, व्यापक आर्थिक जुड़ाव, मज़बूत रक्षा संबंध, आर्थिक तकनीकी सहयोग एवं सांस्कृतिक रिश्तों में वृद्धि, शैक्षिक संबंध और दोनों देशों के लोगों के बीच का संपर्क भी शामिल है। भारत-जापान के बीच बढ़ते संबंधों का मुख्य कारण वैश्विक और क्षेत्रीय आवश्यकताएँ मानी जा रही है। चीन की हिंद महासागर, दक्षिण चीन सागर में उसकी बढ़ती सक्रियता दोनों देशों के लिये चिंता का एक आम कारण बन चुका है। चीन अपनी विशाल परियोजना बीआरआई (बेल्ट और रोड पहल) को लेकर काफी सक्रिय है। भारत और जापान द्वारा हमेशा से इस परियोजना का विरोध किया गया है और इसका विकल्प वे बीआरआई के रूप में पेश करते हैं। अफ्रीकी महाद्वीप के देशों में भी चीन ने बड़े पैमाने पर प्रवेश किया है। इसलिये चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिये दोनों देश बांग्लादेश, श्रीलंका तथा म्यांमार और हिन्द महासागर द्वीपों में विद्युत परियोजनाएँ, रेलमार्ग, बंरगाह सुविधाओं को विकसित करने के लिये एक साथ काम कर रहे हैं। इसके साथ ही वे एशिया-अफ्रीका विकास गलियारे नामक अवधारणा को भी बढ़ावा दे रहे हैं ताकि उनकी योजनाओं के विस्तार द्वारा अफ्रीका और दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच आर्थिक संबंधों को मज़बूती मिल सके।
भारत और जापान दोनों बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बनाए रखने में रूचि रखते हैं। इसी के आलोक में दोनों देश चीन पर भी बहुपक्षीय विश्व को लेकर दबाव बनाना चाहते हैं। यह पूरी दुनिया के साथ-साथ दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के हित में है।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-भारत और जापान को सैन्य संलग्नता की तुलना में अपने बीच ‘आर्थिक साझेदारी’ को महत्त्व देने की आवश्यकता ज़्यादा है। यह आर्थिक साझेदारी बड़े आर्थिक एकीकरण को लेकर एक निर्माण समूह के रूप में काम कर सकती है। इसे रणनीतिक लक्ष्य के रूप में अपनाए जाने की आवश्यकता है। कई दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में जापान ने पहले से ही अपनी मौजूदगी बनायी हुई है और दक्षिण एशिया में भारत को अपनी भूमिका बनाने में इसके संभावित योगदान को कम करके नहीं आंका जाना चाहिये।
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