वर्तमान में राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर नैतिकता में गिरावट दर्ज की जा रही है, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय की प्राप्ति में बाधक कारक बन गया है। इस नैतिकता में गिरावट के कारणों को बताएँ तथा राजनैतिक और प्रशासनिक जीवन में नैतिकता की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए इसमें सुधार हेतु सुझाव दें।
21 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नभारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहाँ जनसंख्या का एक बड़ा भाग अब भी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित है और संविधान सामाजिक तथा आर्थिक न्याय की बात करता है, वहाँ नीति निर्माण और क्रियान्वयन में मुख्य भूमिका निभाने वाले राजनेताओं और प्रशासकों में उच्च नैतिक मूल्यों का होना आवश्यक है किंतु वर्तमान में इनमें नैतिकता में गिरावट देखने को मिल रही है।
भारत में राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर नैतिकता में गिरावट के मूल कारण सामान्यत: समान हैं जिसमें अधिकतम भौतिक सुख की प्राप्ति, शक्ति का केंद्रीकरण (कुछ ही हाथों में), भ्रष्ट गतिविधियाँ, किसी भी स्थिति में नाम कमाने की लालसा, नेता-प्रशासक गठजोड़, सार्वजनिक नैतिक मूल्यों की अपेक्षा व्यक्तिगत मूल्यों का हावी होना इत्यादि प्रमुख हैं।
इसके अलावा, राजनीति का अपराधीकरण, धन बल का प्रयोग बढ़ने से भी राजनैतिक नैतिकता में गिरावट देखने को मिल रही है वहीं, प्रशासकों की शिक्षा और चयन प्रक्रिया में खामियों की वजह से नैतिक मूल्यों से शून्य व्यक्तियों का प्रवेश हो जाता है।
चूँकि भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है। इसके अलावा, भारत एक विविधता से भरा देश है, अलग-अलग वर्गों, व्यक्तियों की अलग-अलग समस्याएँ हैं। ऐसी स्थिति में राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर नैतिकता के उच्च मानकों का होना आवश्यक है। यदि राजनीतिज्ञों और प्रशासकों में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, निष्पक्षता और गैर भागीदारी, वस्तुनिष्ठता, समानुभूति, सहनशीलता और दया जैसे नैतिक मूल्य होंगे तब वे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होंगे।
अत: राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर नैतिक मूल्यों में वृद्धि के लिये निम्न उपाय किये जा सकते हैं:
(a) प्रभावशाली नीतिशास्त्रीय संहिता तथा आचरण संहिता का क्रियान्वयन किया जाए।
(b) जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 में संशोधन कर राजनीति के अपराधीकरण संबंधी प्रावधान का प्रभावी क्रियान्वयन।
(c) संसदीय विशेषाधिकारों को पुन: परिभाषित करना और उनको संहिताबद्ध करना।
(d) नोलन समिति द्वारा निर्धारित नैतिक मानकों को लागू करना।
(a) नीतिशास्त्रीय संहिता और आचार संहिता में बदलाव कर अधिक प्रभावशाली क्रियान्वयन करना।
(b) शिक्षा और चयन प्रक्रिया में उच्च मूल्यों को शामिल करना।
(c) समस्याओं के प्रति अनुकूल नैतिक मूल्यों के विकास हेतु प्रभावी प्रशिक्षण प्रदान करना।
उपर्युक्त के अलावा, राजनैतिक व प्रशासनिक स्तर पर नैतिकता को बढ़ावा देने हेतु भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम को कठोर बनाना, लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट लागू करना, इत्यादि उपाय किये जा सकते हैं।
निष्कर्ष: कोई भी सिस्टम (तंत्र) या समाज दोषहीन (Perfect) नहीं है और न ही हो सकता है किंतु उपर्युक्त सुझावों को सम्मिलित करते हुए यदि प्रयास किये जाएँ तो न केवल सतत् और समावेशी विकास की प्राप्ति संभव है अपितु संविधान में उल्लिखित न्याय की प्राप्ति भी संभव हो सकेगी।