नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 की मुख्य विशेषताअें पर चर्चा करते हुए बताएँ कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के उद्देश्य से लाया गया यह विधेयक क्या धर्म के आधार पर अंतर स्थापित करने के क्रम में संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है?
19 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
लोकसभा द्वारा पारित नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 द्वारा नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है। इस संशोधन का मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से संबंधित 6 अल्पसंख्यक (गैर-मुस्लिम) यथा हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई और पारसी धर्मों के व्यक्तियों द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्ति प्रक्रिया के क्रम में आवश्यक पात्रता संबंधी मानदंडों में छूट देना है।
विषय-वस्तु के पहले भाग में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 की मुख्य विशेषताओं पर चर्चा करेंगे-
विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ-
नागरिकता अधिनियम, 1955 अवैध प्रवासियों द्वारा भारत की नागरिकता हासिल करने पर प्रतिबंध लगाता है। नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव करता है ताकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए अवैध प्रवासियों (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई) को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सके।
संशोधन: इन अवैध प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत भी छूट प्रदान करनी होगी।
नागरिकता अधिनियम, 1955 कुछ शर्त्तों को पूरा करने की स्थिति में, व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है। हालाँकि इस प्रकार नागरिकता प्रदान करने के लिये यह जरूरी है कि नागरिकता हेतु आवेदन करने वाला व्यक्ति आवेदन करने से पहले एक निश्चित समयावधि से भारत में रह रहा हो अथवा केंद्र सरकार की नौकरी कर रहा हो। तथा-
संशोधन: नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई तथा पारसी प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान करता है।
1955 के अधिनियम के अनुसार केंद्र सरकार निम्नलिखित आधारों पर OCI के पंजीकरण को रद्द कर सकती है-
संशोधन: नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 OCI कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द करने में उल्लिखित कारणों में एक और आधार जोड़ने का प्रावधान करता है। जिसके अनुसार यदि OCI द्वारा देश के किसी भी कानून के उल्लंघन की स्थिति में उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है। इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। कानून को लागू करने में कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिये और सभी को न्याय और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिये पूरी कोशिश की जानी चाहिये। अतीत में भी भारत ने उन शरणार्थियों को आश्रय दिया है, जिन्हें उनकी भाषा (श्रीलंका में तमिल) के कारण सताया जा रहा था। इस बिल में ऐसे अल्पसंख्यक शामिल नहीं है, इसलिये धार्मिक अल्पसंख्यकों की बजाए ‘प्रताड़ित अल्पसंख्यक’ शब्द को शामिल करके कानून के दायरे को विस्तारित करना आवश्यक है।