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प्रश्न :
भारत में गरीबी को दूर करने और सरकार द्वारा गरीबों को प्रभावी सब्सिडी लक्षित करने में विफल रहने पर, समाधान के रूप में लाई जा रही ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ किस हद तक प्रभावी सिद्ध होगी? समालोचनात्मक उत्तर दीजिये।
17 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
भूमिका:
यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) एक न्यूनतम आधारभूत आय की गारंटी है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को बिना किसी न्यूनतम अर्हता के आजीविका हेतु हर माह सरकार द्वारा एक नियत राशि दिये जाने का प्रावधान है। यह व्यक्ति को किसी अन्य स्रोत से हो रही आय के अलावा प्राप्त होगी। यह बिना किसी शर्त के सभी को प्राप्त होने वाला अधिकार है तथा इसके लिये व्यक्ति को केवल भारत का नागरिक होना जरूरी है।विषय-वस्तु
वर्ष 2016-17 के भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम को एक अध्याय के रूप में शामिल कर इसके विविध पक्षों पर चर्चा की गई। विश्व स्तर पर हम पाते हैं कि स्विटजरलैंड पहला ऐसा देश है जिसने इसे लागू करने के लिये जनमत संग्रह कराया परंतु इसके वित्तीय प्रभाव और काम के प्रति लोगों की प्रेरणा के खत्म होने की आशंका से इसे खारिज कर दिया गया। हाल ही में सिक्किम सरकार ने भी यूनिर्वल बेसिक इनकम को कार्यान्वित करने का प्रस्ताव रखा है।यूबीआई के पक्ष में तर्क
- प्रत्येक व्यक्ति को एक न्यूनतम आय की गारंटी प्रदान करना, संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त गरिमामय जीवन जीने के अधिकार को वास्तविकता प्रदान करेगा।
- सरकार द्वारा एक नियत राशि दिये जाने से निर्धन व्यक्ति उपभोग के एक निश्चित स्तर को प्राप्त कर सकेंगे जिससे उनकी आर्थिक दशा में सुधार आएगा।
- भारतीय अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र के 90% कामगार एवं कई लोग जो भिक्षावृत्ति से जुड़े है व नि:शक्त हैं तथा देश के कई भागों के वे लोग जो हर वर्ष प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होते हैं और जो अनियोजित विकासात्मक गतिविधियों के कारण पलायन को मजबूर होते हैं, उन सभी को आर्थिक असुरक्षा के भय से मुक्ति मिलेगी।
- कल्याणकारी व्यय के उपयोग की जिम्मेदारी अब नागरिकों पर भी होगी एवं लेटलतीफी, अफसरशाही, लाभों के मनमाने वितरण आदि की समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
यूबीआई के विपक्ष में तर्क
- एक सतत् और सभी लोगों के लिये बुनियादी आय लोगों में कार्य करने के प्रोत्साहन को कम कर सकती है।
- पितृसत्तात्मक समाज में सरकार द्वारा महिलाओं को जो बुनियादी आय प्रदान की जाएगी, संभव है उस पर पुरुषों का नियंत्रण हो जाए।
- यूबीआई के कारण मजदूरी दर में वृद्धि होने से, वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य में बढ़ोतरी होगी जिससे महंगाई का उर्ध्वाधर चव्र शुरू हो जाएगा।
- बेसिक आय के स्तर को उच्च बनाए रखने में भारत का राजकोषीय संतुलन प्रभावित होगा।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-यूबीआई निश्चित तौर पर सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के संबंध में एक आकर्षक विचार है। परंतु इसकी ढाँचा व्यावहारिक आधारों पर तैयार होना चाहिये ताकि वित्तीय बोझ व राजकोषीय असंतुलन का खतरा न रहे। इस योजना से धनी व उच्च मध्यमवर्गीय लाभार्थियों को बाहर रखना चाहिये। आर्थिक रूप से पिछड़े ब्लॉक एवं जिलों में पहले इसे ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के तौर पर लागू कर, इसका बारीकी से मूल्यांकन करना चाहिये। इसके बाद ही चरणबद्ध तरीके से इस योजना को पूरे भारत में लागू करना चाहिये।
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