देवदासी प्रथा से आप क्या समझते हैं? कर्नाटक देवदासी (समर्पण का प्रतिषेध) अधिनियम, 1982 को लागू हुए वर्षों बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा इस कानून के संचालन हेतु नियमों को लागू करना बाकी है जो कहीं-न-कहीं इस कुप्रथा को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो रहा है। कथन पर चर्चा करते हुए इस कुप्रथा के खत्म न हो पाने के पीछे के कारणों पर प्रकाश डालें।
17 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
प्राचीन समय से ही हमारे समाज में कई कुरीतियाँ और अंधविश्वास व्याप्त रही है। इनमें से कुछ समय के साथ वैज्ञानिक चेतना के विकसित होने से धीरे-धीरे खत्म भी हुए। किंतु हमारे समाज में आज भी कुछ ऐसी कुरीतियों और अंधविश्वासों का व्यापक पैमाने पर अभ्यास किया जाता है जो 21वीं सदी के मानव समाज के लिये शर्मसार करने वाली है। देवदासी प्रथा इन्हीं कुरीतियों में से एक मानी जाती है।
देवदासी प्रथा के तहत देवी या देवताओं को प्रसन्न करने के लिये सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिर में समर्पित कर दिया जाता है। एक बार देवदासी बनने के बाद ये बच्चियाँ न तो किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर सकती हैं और न ही सामान्य जीवन व्यतीत कर सकती हैं। देवी और देवताओं को प्रसन्न करने के लिये सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करने की यह कुप्रथा न केवल कर्नाटक में बनी हुई हैं बल्कि गोवा जैसे पड़ोसी राज्यों में भी इसका विस्तार हो रहा है। मानसिक या शारीरिक रूप से कमजोर लड़कियाँ या फिर सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों की लड़कियाँ इस कुप्रथा के लिये सबसे आसान शिकार मानी जाती है। इसके बाद उन्हें देह-व्यापार के दलदल में डाल दिया जाता है। देवदासी प्रथा को परिवार और उनके समुदाय से प्रथागत मंजूरी मिली रहती है।
हम पाते हैं कि कर्नाटक देवदासी (समर्पण का प्रतिबंध) अधिनियम, 1982 के लागू हुए वर्षों बीत जाने के बावजूद भी यह कुप्रथा खत्म नहीं हो रही।
अंत में संक्षिप्त, संतुलित और सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-