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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में विस्तारपूर्वक बताते हुए हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत पद्धति के मध्य विद्यमान अंतरों को स्पष्ट कीजिये।

    16 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    भूमिका:


    भारतीय शास्त्रीय संगीत का सामान्य परिचय देते हुए उत्तर प्रारंभ करें-

    अध्ययन की सुविधा से संगीत को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है जिसमें से एक है शास्त्रीय संगीत। नियमों में बंधा हुआ शास्त्र-सम्मत संगीत ही शास्त्रीय संगीत कहलाता है। इनमें नियमों का कठोरता से पालन ज़रूरी होता है।

    विषय-वस्तु


    विषय-वस्तु के पहले भाग में शास्त्रीय संगीत के भेदों को स्पष्ट करेंगे-

    शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति अर्थात् गायन, वादन और नर्तन में पूरी तरह से नियमबद्धता आवश्यक है। शास्त्रीय संगीत की शैली में ध्रुपद प्रमुख है और इसके अलावा इसमें ख्याल, धमार, चतुरंग, तराना, त्रिवट, रागमाला, लक्षणगीत आदि शैलियाँ शामिल हैं। ध्रुपद भारत की समृद्ध गायनशैली मानी जाती है। यह एक प्राचीन शैली है जिसका प्रचलन मध्यकाल में अधिक था।

    मध्यकाल में भारतीय संगीत के विकास के दौरान हिंदुस्तान संगीत (उत्तर भारतीय शैली) और कर्नाटक संगीत (दक्षिण भारतीय शैली) के रूप में दो भिन्न शैलियों का विकास हुआ। अरबी एवं ईरानी संगीत शैलियों के प्रभाव से हिंदुस्तानी संगीत में नए आयाम जुड़े परंतु दक्षिण भारत में भारतीय संगीत का परंपरागत एवं शुद्धतम रूप चलता रहा। यह संगीत अधिकांशत: भक्ति संगीत के रूप में होता है और इसके अंतर्गत अधिकतर रचनाएँ हिंदू देवी-देवताओं को संबोधित होती है।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में उत्तर भारतीय संगीत (हिंदुस्तानी) एवं दक्षिणी भारतीय संगीत (कर्नाटक) के मध्य अंतर को स्पष्ट करेंगे-

    हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक दोनों संगीत पद्धतियाँ भारत की ही है एवं दोनों के मूल सिद्धांतों में कोई विशेष अंतर नहीं है। नीचे दोनों के मध्य विद्यमान अंतरों को स्पष्ट किया गया है-

    हिंदुस्तानी संगीत कर्नाटक संगीत
    • हिंदुस्तानी संगीत पर अरबी, ईरानी, तूरानी एवं अफगानी प्रभाव है। • मुस्लिम आक्रमण से बचे रहने के कारण कर्नाटक संगीत मूलत: स्वदेशी है।
    • इस शैली में हिंदू, उर्दू, पंजाबी, ब्रज, मराठा आदि भाषाओं का प्रयोग होता है। • इस शैली में कन्नड़, तेलुगू, तमिल, मलयालम भाषाओं का प्रयोग होता है।
    • इसमें आवाज लगाने की शैली खड़ी, दानेदार और खटकेदार होती है। •इसमें आवाज लगाने की शैली मींडयुक्त अधिक होती है।
    • इसमें रागों की उत्पत्ति दस थाटों से मानी जाती है। • इसमें रागों की उत्पत्ति 72 मेलों से मानी जाती है।


    निष्कर्ष


    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

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