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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘‘विभिन्न अलगाववादी गुटों की समय-समय पर अनेक परस्पर विरोधी भूमिकाओं की वज़ह से उत्तर-पूर्वी राज्यों में अशांति बनी रहती है।'' उक्त कथन के कारणों को स्पष्ट करते हुए उत्तर-पूर्व क्षेत्र में उग्रवाद और उसके विदेशी संबंधों की चर्चा करें।

    15 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    भूमिका:


    भारत के समस्त उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में 100 से भी अधिक जनजातीय समूह निवास करते हैं जो अपनी विभिन्न भाषाओं एवं रीति-रीवाजों, समृद्ध एवं विस्तृत सांस्कृतिक धरोहर के साथ जीवन निर्वाह करते हैं। आजादी के पूर्व उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के इन आदिवासियों का अन्य भारतीय क्षेत्र के साथ किसी भी प्रकार के राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक, धार्मिक तथा व्यावसायिक संबंध न के बराबर थे।

    विषय-वस्तु


    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने इन लोगों के बीच परस्पर संबंध बनाने तथा एक आदिवासी नीति के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में इस क्षेत्र के लिये विशेष व्यवस्था की गई है, जिसमें स्वशासन, स्वायत्तता तथा विकेंद्रीकरण शामिल है। इन क्षेत्रों में जिले तथा स्थानीय क्षेत्रीय समिति का गठन किया गया है।

    प्रारंभिक तौर पर एक ही राज्य असम तथा एक केंद्र शासित क्षेत्र (नेफा- नॉर्थ-ईस्ट प्रंटियर एजेंसी) था, जिसमें पूरा उत्तर-पूर्व शामिल था। बाद में नेफा को अरुणाचल प्रदेश नाम दे दिया गया, जिसे 1987 में एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया। नेफा का विकास देश के अन्य भागों के साथ सहज एवं शांतिपूर्ण रूप से हुआ जबकि असम में प्रशासनिक नियंत्रण वाले क्षेत्र के अंदर आदिवासी क्षेत्रों में कई समस्याएँ पनपने लगीं। इसकी शुरुआत 50 के दशक में नागालैंड में फिजो द्वारा विद्रोह का झंडा खड़ा करने के साथ हुई जो बाद में मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय तक फैल गई।

    वर्तमान में इसी तरह की घटनाएँ असम के निचले क्षेत्र तथा कर्बी आंगलोंग के क्षेत्रों में होती रही हैं। बोडो क्षेत्र में आदिवासी तथा गैर-आदिवासी लोगों के बीच अविश्वास की भावना बढ़ रही है। मेघालय में गारो अलगाववाद जारी है तथा मणिपुर में गैर-मणिपुरी लोगों को ज्यादा क्षति पहुँचाई जाती है।

    उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में उग्रवाद के कारण-

    • शासकीय लोगों में व्यापक भ्रष्टाचार।
    • आदिवासी समुदायों में योग्य तथा दूरदर्शी नेतृत्व का अभाव।
    • विभिन्न दलों से राजनीतिक सहायता।
    • शस्त्र तथा बारुद की प्रचुर उपलब्धता।
    • आदिवासी आबादियों के बीच पृथकता एवं पिछड़ा होने की भावना।
    • सीमा पार से घुसपैठियों के कारण आबादी के ढाँचे में परिवर्तन।
    • देश के अन्य लोगों तथा अन्य भागों से कटे होने की भावना।

    इन कारणों के साथ-साथ उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में उग्रवाद पनपने के कारणों में उनके विदेशी संबंध भी हैं जो कि निम्न हैं:

    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में उग्रवाद का सबसे बड़ा संबंध म्याँमार से है। भारत की म्याँमार के साथ लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है, जो चार राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम से मिलती है। कठिन पहाड़ी क्षेत्र तथा सीमा के दोनों तरफ बसे जनजातीय लोगों का संबंध उग्रवादी गुटों के लिये, सीमा के आर-पार जाने तथा नई भर्तियों हेतु प्रशिक्षण तथा हथियार खरीदने के लिये सीमा पार कैंप स्थापित करने में आसान बनाता है।
    • सामान्य तौर पर हथियार, थाईलैंड के हथियार-बाजार से खरीदे जाते हैं और अंत में इन चारों राज्यों में लाए जाते हैं।
    • उग्रवादियों द्वारा बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र का उपयोग किया जाता है।
    • चीन से सटे क्षेत्रों में प्रवेश करने हेतु उग्रवादी गुट छिपने के लिये नेपाल का इस्तेमाल करते हैं।
    • असम स्थित भूमिगत गुट, जैसे- उल्फा और NDFB भूटान का इस्तेमाल करते हैं।

    कुल मिलाकर पिछले कुछ समय में मिजोरम तथा त्रिपुरा में विद्रोही गुटों प्र नियंत्रण करने में स्पष्ट तौर पर सफलता मिली है। साथ ही हाल ही में सरकार ने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में विद्यमान अधिकांश अलगावादी गुटों के साथ युद्ध विराम तथा ऑपरेशन स्थगन (गतिविधियों पर रोक) संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

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