अंतरिक्ष में अन्वेषण से संबंधित चुनौतियाँ, अंतरिक्ष यात्रा और अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी के उपयोग पर आधारित पर्यटन अनुप्रयोग कार्यक्रम नई पीढ़ी के लिये कई अवसर उपलब्ध करा सकते हैं। ज़रूरत है साहस कर इसमें प्रवेश करने और लाभ उठाने की। क्या नया भारत इसके लिये तैयार है? टिप्पणी करें।
14 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया के विकसित देशों के कार्यक्रमों के मुकाबले 20 साल बाद शुरू हुआ, लेकिन आज भारत उन छह राष्ट्रों यथा अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान में शामिल हो गया है जो पृथ्वी के प्रेक्षण, संचार और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये स्वदेशी क्षमता से उपग्रहों का निर्माण करते हैं और उपग्रहों को चंद्रमा या मंगल तक ले जाने में सक्षम हैं।
उच्च टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इसरो का मुख्य जोर इस बात पर रहा है कि इसका उपयोग समाज की भलाई के लिया किया जाए। टेलीविजन सिग्नलों का डायरेक्ट-टू-होम ट्रांसमिशन, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को डिजिटल प्रणाली के ज़रिये जोड़ना, टेलीमेडिसिन, टेली एजुकेशन और आपदा चेतावनी प्रणाली ऐसे कुछ उदाहरण है।
हम पाते है कि बाह्य अंतरिक्ष और ग्रहों में मनुष्य की खोज और उसकी उपस्थिति का पता लगना अगली चुनौती के रूप में सामने आएगा। भारत को अभी इस क्षेत्र में प्रवेश करना बाकी है। भारत का 2022 तक मानव युक्त यान से अंतरिक्ष यात्रा करने की योजना टेक्नोलॉजी संबंधी चुनौतियों को जन्म देगी। जीवन रक्षा प्रणाली से युक्त मॉड्यूल का विकास करना, क्रू एस्केप प्रणाली और प्रक्षेपण यान की समग्र विश्वसनीयता में सुधार आदि इसमें शमिल है।
इन सबके साथ ही अंतरिक्ष माड्यूल के अंदर जीवित रहने योग्य स्थितियाँ पैदा करना भी टेक्नोलॉजी के विकास क्रम में आवश्यक होगा। अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये मानव व्यवहार और शरीर क्रियाविज्ञान तथा मनोविज्ञान की समझ हासिल करनी होगी। इस प्रकार चिकित्सा विज्ञान की एक नई शाखा अंतरिक्ष चिकित्सा विज्ञान उभर कर सामने आएगी। फिलहाल ये सुविधाएँ हमारे देश में उपलब्ध नहीं है एवं नये कार्यक्रमों के अंतर्गत इनका विकास करना जरूरी होगा।
मानव युक्त अभियान को पूरा करने के लिये नई टेक्नोलॉजी और प्रणालियों के विकास में मेहनत और नवसृजन की आवश्यकता होगी। साथ ही वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों और सहायक कर्मचारियों को अभी और काम करना होगा। चंद्रमा और मंगल के प्राकृतिक संसाधनों की खोज करने और उनमें मानव बस्तियाँ बसाने के लिये नई प्रणालियों के विकास के साथ ही धन की भी आवश्यकता होगी। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं तकनीकी तथा संसाधनों को साझा कर ही प्राप्त किया जा सकेगा।
आज का ज्ञान आधारित समाज डिजिटल संपर्क-सूत्रों पर पूरी तरह आधारित है। तेज रफ्तार डिजिटल संपर्क के लिये जीसैट&Iप् अंतरिक्ष अनुसंधान देश की आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है। इनके साथ ही उच्चतर डेटा क्षमता वाले परिष्कृत उपग्रह भी विकसित किये जाने की आवश्यकता है ताकि देश के हर क्षेत्र की कवरेज की जा सके। इससे ज्ञान तक पहुँच का विस्तार होगा और टेलीमेडिसिन के ज़रिये स्वास्थ्य सुविधाएँ भी उपलब्ध करायी जा सकेंगी।
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-
अंतरिक्ष अनुसंधान बड़ा मनोहर क्षेत्र है और भारत इसमें पीछे नहीं है। ज़रूरत है कि नई पीढ़ी इस अवसर का लाभ उठाते हुए इसमें प्रवेश करें और विश्वस्तरीय विश्वसनीयता स्थापित करें।