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प्रश्न :
कांट के नैतिक सिद्धांत का स्पष्ट मूल्यांकन कीजिये।
30 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में कांट के नैतिक सिद्धांत को बताएँ।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में सिद्धांत का मूल्यांकन स्पष्ट करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
पश्चिमी दर्शन में निरपेक्षवादी या कर्त्तव्यवादी नीतिमीमांसा का चरम विकास कांट के दर्शन में हुआ है। उसके नैतिक सिद्धांत को निरपेक्ष आदेश का सिद्धांत कहा जाता है। इस सिद्धांत का सार यह है कि नैतिकता न तो मनुष्य की इच्छाओं या भावनाओं से संबंधित होती है और न ही कार्यों के परिणामों से, नैतिकता का एकमात्र संबंध कर्त्तव्य की चेतना से होता है।
कांट के सिद्धांत का मूल्यांकन
- कांट का सिद्धांत अत्यंत कठोर है क्योंकि वे किसी भी स्थिति में कर्त्तव्य का अपवाद स्वीकार नहीं करते। कभी-कभी इसके परिणाम घातक भी हो सकते हैं, जैसे निरपेक्ष आदेश के तौर पर सच बोलना हमारा कर्त्तव्य है किंतु विशेष परिस्थितियों में जबकि स्पष्ट रूप से दिख रहा हो कि सच बोलने से किसी निर्दोष की जान चली जाएगी तो हमें क्या करना चाहिए?
- कांट ने नैतिक कर्मों के परिणामों तथा परिस्थितियों की घोर उपेक्षा की है जबकि वास्तविक जीवन में इन पर ध्यान देना आवश्यक होता है।
- कांट ने दया, उदारता व सहानुभूति जैसी भावनाओं के तहत किये गए कार्यों को प्रशंसनीय मानकर भी उनका नैतिक मूल्य स्वीकार नहीं किया है, यह विचार भी सामाजिक नैतिकता की दृष्टि से अत्यंत कठोर है।
- कांट ने ऋण चुकाने को अपवाद रहित कर्त्तव्य बताया है। पेटन ने इस पर आक्षेप करते हुए प्लेटो के एक कथन को उद्धृत किया है कि अपने वचन के अनुसार किसी ऐसे व्यक्ति को उसके हथियार लौटाना हमारा कर्त्तव्य नहीं है जो इस बीच पागल और हत्यारा बन चुका हो।
- कांट ने आत्महत्या को भी अपवाद रहित तरीके से गलत या अनैतिक माना है, जबकि पेटन का तर्क है कि अगर जीवन में असहनीय दर्द के अलावा कुछ न बचे तो उसे समाप्त करने में कोई अनैतिकता नहीं है।
- सार्वभौमिकता का नियम भी अव्यावहारिक है क्योंकि कई कार्य सार्वभौमिक न होकर भी नैतिक हो सकते हैं। उदाहरण के लिये प्रत्येक व्यक्ति को गरीबों की मदद करनी चाहिये। अगर इसे सार्वभौमिक नियम मान लें और सभी लोग ऐसा करने लगें तो कोई गरीब बचेगा ही नहीं और ऐसा होते ही नियम की सार्वभौमिकता भंग हो जाएगी।
प्रत्येक व्यक्ति को हर स्थिति में साध्य मानना भी संभव नहीं है। उदाहरण के लिये दो देशों के युद्ध में सैनिकों को साधन बनना ही पड़ता है, इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति को भयानक संक्रामक रोग हो जाए तो उसे शेष समाज से अलग रखना परिणाम की दृष्टि से उचित हो सकता है किंतु उसे साध्य मानने की दृष्टि से अनुचित होगा।
यद्यपि मूल्यांकन के आधार पर कांट के नैतिक सिद्धांत की आलोचना की जाती है लेकिन नीतिशास्त्र में कांट की नीतिमीमांसा का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
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