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प्रश्न :
फ्राँसीसी क्रांति उस विशाल नदी की तरह रही, जो उच्च पर्वत शिखर से प्रारंभ होकर मार्ग में अनेक छोटे-मोटे पर्वतों को लाँघती हुई कभी तीव्र गति से तो कभी मंद गति से प्रवाहमान रही। उपर्युक्त कथन के संदर्भ में फ्राँसीसी क्रांति के स्वरूप का निर्धारण कीजिये।
12 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
भूमिका:
फ्राँसीसी क्रांति के स्वरूप को समझने के लिये इसकी उत्पत्ति, प्रगति महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों तथा समकालीन यूरोप पर पड़े प्रभावों का विश्लेषण करना होगा। क्रांति की उत्पत्ति मध्यम वर्ग के शोषण के कारण हुई, किंतु सशक्त नेतृत्व के अभाव में यह क्रांतिकारियों के हाथों में चली गई। ये क्रांतिकारी क्रांति के आदर्शों और मूल्यों को संरक्षित नहीं रख सके। फलस्वरूप शासन की दुर्बलता का लाभ नेपोलियन ने उठाया और उसने क्रांति के मूल आदर्शों को ही परिवर्तित करते हुए समस्त यूरोप को प्रभावित किया।विषय-वस्तु
फ्राँस की क्रांति के स्वरूप को समझने के लिये हमें निम्नलिखित बिंदुओं को समझना होगा:मध्यवर्गीय स्वरूप
- फ्राँस की क्रांति की शुरुआत तृतीय स्टेट के बुर्जुआ तत्त्वों के हाथ में हुई थी।
- मानवाधिकारों की घोषणा में भी मध्यम वर्गीय प्रभाव दिखाई देता है।
- जैकोबियनों ने आतंक के राज्य में भी बुर्जुआ वर्ग के हितों को ही सर्वोपरि माना।
विश्वव्यापी स्वरूप
- फ्रांस की क्रांति एक राष्ट्रीय घटना नहीं थी बल्कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों ने समकालीन यूरोप के राष्ट्रों को बहुमूल्य राजनीतिक आदर्श दिये। ये आदर्श इतने शाश्वत थे कि वर्तमान में भी इन्हें महत्त्वपूर्ण राजनीतिक आदर्श माना जाता है।
- ये क्रांति पूर्वनियोजित नहीं थी इसलिये यह आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार अपने उद्देश्यों को प्रप्त करने के लिये रणनीतियाँ और प्रक्रियाओं को परिवर्तित करती रही थी। क्रांति का प्रारंभ बुर्जुआ वर्ग के हाथों में हुआ फिर आतंक के शासन से क्रांति संचालित हुई एवं अंत में क्रांति की धारा को नेपोलियन की निरंकुशता ने आगे बढ़ाया।
- अधिकारविहीन और अधिकारपूर्ण वर्गों में बँटे फ्राँसीसी समाज की कुण्ठा ने भी क्रांति को उत्प्रेरित किया। इस प्रकार क्रांति ने सामाजिक स्वरूप भी ले लिया था।
- बेस्पियर के हाथों में यह क्रांति अधिनायकवादी हो गई। आगे चलकर नेपोलियन ने भी अधिनायकवादी रूख अपनाया।
- क्रांति ने फ्राँस के समाज में व्याप्त तमाम विकृतियों, विसंगतियों और बुनियादी दोषों के विरूद्ध एक सशक्त प्र्तिक्रिया दी। इस रूप में यह प्रगतिशील स्वरूप भी लिये हुए थी।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित और सारगर्भित निष्कर्ष लिखे-यह कहा जा सकता है कि क्रांति ने अपनी उत्पत्ति से लेकर अंत तक अनेक परिवर्तन और उतार-चढ़ाव देखे। यह नदी की धारा की तरह बहते हुए अनेक पर्वतों को पार करती हुई निरंतर अपने स्वरूप को प्रिवर्तित करती रही और अंत में नेपोलियन के हाथों में आकर इसने अपने आदर्शों को भी तिलांजलि दे दी।
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