भारत द्वारा 2022 तक ‘सिंगल-यूज़ प्लास्टिक’ के प्रयोग को पूरी तरह खत्म करने की प्रतिबद्धता के तहत किये जा रहे ‘प्लास्टिक बैन’ का क्रियान्वयन क्या पूरी तरह संभव है? अगर नहीं तो, जरूरी है कि इसकी सफलता हेतु ऑल सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के विरुद्ध जन आंदोलन का प्रयोग किया जाए। चर्चा कीजिये।
10 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
प्लास्टिक का नॉन-बायोडिग्रेडेबल होना पर्यावरण के लिये एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। प्लास्टिक न तो बैक्टीरिया आदि क्रियाओं द्वारा अपघटित नहीं होते और अपघटित होने में कई साल का समय भी लेते हैं। पर्यावरण में मिलकर प्रदूषण फैलाने के कारण इसे इको-प्रेंडली नहीं माना जाता। प्लास्टिक प्रदूषण से प्रकृति, वन्यजीव और यहाँ तक कि हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री द्वारा 2022 तक भारत से ऑल-सिंगल यूज प्लास्टिक’ को हटाने की प्रतिज्ञा ली गई थी।
भारत सरकार द्वारा इस दिशा में निम्न प्रयास किये जा रहे हैं-
डिस्पोजेबल प्रोडक्ट्स एवं पैकेजिंग वाले प्लास्टिक के उपयोग में हुई बढ़ोतरी के कारण प्लास्टिक कचरे के ढेर में वृद्धि हुई है। इसलिये सिंगल यूज या डिस्पोजेबल प्लास्टिक के उपयोग में कमी लाते हुए इसका प्रयोग बिल्कुल बंद करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि बायोडिग्रडिबल प्लास्टिक्स का अधिक-से-अधिक प्रयोग हो। कचरे का इक्ट्ठा होना मानव व्यवहार से संबंधित मुद्दा है जिसे बदलने के लिये शिक्षा की आवश्यकता होती है। इससे कचरे को उसके स्रोत पर ही पैदा करने से रोका जा सकता है। कचरे के प्रबंधन के नजरिये से अब 3R के बजाए 5R सिद्धांत पर अमल करने की जरूरत महसूस की जा रही है जहाँ 4R एनर्जी रिकवरी और 5R मॉल्येक्यूलर रिडिजाइन के लिये जाना जाता है।
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
यह देखने में आता है कि सिर्फ नीतियों का निर्माण या उनका क्रियान्वयन ही किसी योजना की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण नहीं होते अपितु उसे जनमानस से जोड़ना भी बहुत मायने रखता है। जहाँ तक प्लास्टिक बैन का सवाल है, इसे जब तक जनआंदोलन का रूप नहीं दिया जाएगा तब तक सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग को रोकना मुश्किल होगा। इसलिये जरूरी है कि नीतियों के क्रियान्वयन में जनभागीदारी को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका दी जाए।