गांधी एक राजनीतिज्ञ, संगठनकर्त्ता, जनता के नेता और नैतिक सुधारक के रूप में महान हैं, परंतु वह मनुष्य के रूप में उससे भी अधिक महान हैं क्योंकि ये सभी पक्ष उनकी मानवता को सीमित नहीं करते है। वास्तव में सभी को इससे शक्ति मिलती है। गांधी जी के संदर्भ में कहे गए उपर्युक्त कथन का विश्लेषण कीजिये।
09 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि 100 वर्षों बाद गांधी के बारे में लोग सोचेंगे कि हाड़-माँस का ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है! वस्तुतः इतिहास में गांधी का अद्वितीय स्थान है। अफ्रीका में रंगभेद की नीति के विरुद्ध एक संगठनकर्त्ता और उससे भी बढ़कर एक नेता के रूप में गांधी ने अपनी महानता का परिचय दिया था।
भारत में ब्रिटिशों के शोषणकारी शासन के विरुद्ध एक राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने बिखरे हुए राष्ट्रीय आंदोलन को समेटकर समस्त राष्ट्रीय बल को एक दिशा में उन्मुख करने का कार्य किया। एक महान राजनीतिज्ञ वही हो सकता है जिसकी जनता में स्वीकार्यता हो, जो केवल कुछ वर्गों तक सीमित न हो, अमीरों से अधिक निर्धनों एवं दरिद्रों के बारे में सोचे। गांधी इसी प्रकार के राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में कृषकों, मज़दूरों, महिलाओं, युवाओं आदि सभी को शामिल किया। समाज सुधारक के रूप में अस्पृश्यों को सामाजिक अधिकार दिलाने के लिये वे सक्रिय राजनीति से भी दूर हो गए। उन्होंने ‘हरिजन’ पत्र के द्वारा अपने विचारों को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।
किंतु इन सभी विशेषताओं का आधार कुछ अन्य नहीं बल्कि गांधी की मानवीयता थी। एक मानव के रूप में गांधी ने राजनीतिज्ञ, नेतृत्वकर्त्ता, नैतिक सुधारक आदि अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया। वास्तविकता में यह गांधी की मानवता ही थी, जिसने जनता में उनके प्रति स्वीकार्यता बढ़ाई। ट्रांसवाल के स्टेशन पर ट्रेन से फेंके जाने वाले व्यक्ति ने सकारात्मक प्रतिरोध, सत्याग्रह, अहिंसा आदि अनेक मानवीय हथियारों को इजाद किया।
विपक्षी चाहे कितना भी सशक्त हो उनका मानना था कि पहले वे तुम पर ध्यान नहीं देंगे, फिर तुम पर हसेंगे, फिर वे तुम्हारा विरोध करेंगे और तब तुम जीत जाओगे। स्वतंत्रता के समय नोआखली के सांप्रदायिक दंगों को अकेले अपने दम पर रोकने वाले गांधी की मानवता की इससे बड़ी मिसाल नहीं दी जा सकती।
किंतु उनके मानवीय पक्ष ने उनकी कुछ कमज़ोरियों को भी उजागर किया। आवश्यकता से अधिक आदर्शवादी होने के कारण व्यावहारिकता से दूर हो गए थे। अम्बेडकर ने गांधी का मुखर विरोध किया है। सविनय अवज्ञा की असफलता, देश का बँटवारा आदि का आक्षेप भी उन पर लगता रहा है।
गांधी भी एक साधारण व्यक्ति थे। मानवीय चेतना उनमें भी थी। कमियाँ तो केवल देवताओं में नहीं होती है, गांधी तो मानव थे। वैसे भी अपनी समस्त कमियों को स्वीकारने के कारण ही गांधी मानव से अतिमानव की श्रेणी में आ गए। आइंस्टीन का कथन सच होगा और 100 वर्षों बाद लोग हैरानी से पूछेंगे कि क्या वास्तव में हाड़-माँस का ऐसा व्यक्ति था?