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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    चित्रकला की मुगल शैली और राजपूत शैली में क्या बुनियादी अंतर है? स्पष्ट कीजिये।

    05 Jan, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    उत्तर :

    भूमिका:


    राजपूत शैली एवं मुगल शैली का परिचय देते हुए उत्तर प्रारंभ करें-

    मध्य भारत, राजस्थानी और पहाड़ी क्षेत्र की चित्रकला की जड़ें भारतीय परंपरा में बहुत गहरी जीम हुई हैं। यह प्राथमिक रूप से पंथ-निरपेक्ष मुगल चित्रकला से भिन्न है।

    विषय-वस्तु


    विषय-वस्तु के पहले भाग में राजपूत शैली एवं मुगल शैली का विस्तृत परिचय देंगे-

    राजपूत शैली को भारतीय महाकाव्यों, पुराणों, धार्मिक ग्रंथों, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रेम भरी कविताओं, भारतीय लोक-विधा एवं संगीत से प्रेरणा मिली है। राजपूत शैली में चित्र वसुली पर बनाए गए हैं। इसमें एकाश्म चेहरे ज्यादा बनाए गए हैं। आकृतियों में व्यक्तिगत विशेषताएँ मिलती हैं, जिससे आकृतियों में यथार्थता दिखती है। इस शैली के कलाकारों ने प्रकृति को जड़ रूप में न देखकर उसके साथ संवाद बनाया। इस काल की चित्रकला ने दरबारी कला के चित्रण से बाहर निकल कर उन्मुक्त मानव जीवन के पक्षों को कला का आधार बनाया है। चित्रों में संगीत और साहित्य का समन्वय किया गया है। इस शैली के चित्रों के विषय में सर्वाधिक प्रधानता प्रेम संबंधी चित्रों की है। साथ ही इनमें भक्ति का भाव अधिक दृष्टिगोचर होता है।

    दूसरी तरफ चित्रकला की मुगल शैली की शुरुआत को भारत में चित्रकला के इतिहास की एक युगांतकारी घटना समझा जाता है। चित्रकारी के क्षेत्र में मुगलों ने विशिष्ट योगदान दिया है। उन्होंने चित्रकारी की ऐसी जीवंत परंपरा का सुत्रपात किया, जो मुगलों के अवसान के बाद भी दीर्घकाल तक देश के विभिन्न भागों में कायम रही। मुगल शैली के चित्रों के विषय दरबारी शानो-शौकत, बादशाह की रुचियाँ आदि रहे हैं। इन चित्रों में धार्मिक, सामाजिक जीवन, नायक-नायिका भेद, राग-रागिनी और जनसामान्य के जीवन का चित्रण प्राय: नहीं मिलता। मुगल शैली का रंग विधान प्रचलित भारतीय परंपरा और ईरानी पंरपरा से भिन्नता रखता है। इस काल के अधिकतर चित्र कागज़ पर बनाए गए हैं। इसके अलावा कपड़े, भित्ति और हाथी दाँत पर भी चित्र बनाए गए हैं। इन विशेषताओं के बावजूद मुगल काल के प्रत्येक बादशाह के काल में बने चित्रों में पर्याप्त विशेषताएँ मिलती हैं।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में राजपूत शैली तथा मुगल शैली के मुख्य अंतर को बताएंगे-

    राजपूत शैली मुगल शैली
    स्वरूप शुरुआती दौर में राजपूत शैली का स्वरूप भित्ति चित्रकारी और प्रेस्को शैली के अंतर्गत था। आगे चलकर यहाँ लघु चित्रकला शैली की प्रधानता कायम हो गई। यहाँ पर भित्ति चित्रकला शैली नहीं है बल्कि मुगल शैली का विकास फारसी लघु चित्रकला के रूप में हुआ है।
    विषय यह मुख्यत: आध्यात्मिक और धार्मिक चरित्र की चित्रकला शैली है। यह मुख्यत: मुगल बादशाहों और उनसे जुड़े क्रियाकलापों, वस्तुओं, शिकार और गौरव आदि को चित्रित करने वाली शैली है।
    विशिष्टता इसमें हिंदू प्रतीकों का इस्तेमाल खूब हुआ है, जैसे-कमल, मोर, गरुड़ आदि। मुगल चित्रकला में व्यक्ति पेड़-पौधे, उँट और बाज आदि के चित्रण की प्रधानता रही है।
    कालखंड 17वीं-18वीं शताब्दी के बीच इसकी महत्ता रही। 15वीं-18वीं शताब्दी के बीच इसकी विशिष्टता बनी रही।


    निष्कर्ष


    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

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