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प्रश्न :
भूमि एवं जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन मानव विपत्तियों को प्रबल रूप से कम कर देगा। स्पष्ट कीजिये।
29 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणउत्तर :
भूमिका:
प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रारंभ करें-पृथ्वी पर संसाधन सीमित हैं परंतु दिन-प्रतिदिन की बढ़ती आबादी के कारण संसाधनों की पूर्ति करना सभी के लिये मुश्किल हो रहा है। हम पृथ्वी के मौजूदा संसाधन का तेजी से उपभोग कर रहे हैं। इसके कारण खनिज संसाधन, खाद्य पदार्थ, पेयजल इत्यादि की कमी हो रही है।
विषय-वस्तु
विषय-वस्तु के पहले भाग में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता पर चर्चा करेंगे-प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपभोग से पर्यावरण की हानि और जीव-जंतुओं तथा वनस्पति का तेजी से विनाश हो रहा है। यदि हमने अपनी आवश्यकताओं का उचित प्रबंधन नहीं किया तो जल्द ही हमारे सामने अस्तित्व बचाने की समस्या खड़ी हो जाएगी। इस कारण इस समस्या से निपटने हेतु बेहतर प्रयास की आवश्यकता है। भूमि एवं जल का प्रभावी प्रबंधन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है।
भूमि मानव ही नहीं वरन् इस पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी जीवों की प्राथमिक आवश्यकता है। इस कारण इसके प्रभावी प्रबंधन से निम्नलिखित मानव विपत्तियों का समाधान संभव है।
- बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा अवसंरचना की मांग के कारण कृषि भूमि की कमी होती जा रही है जो खाद्य सुरक्षा हेतु समस्या बन सकती है। उपलब्ध डाटा एवं भूमि के मानचित्रण के माध्यम से बेहतर नियोजन किया जा सकता है जो शहरीकरण, उद्योग एवं कृषि की आवश्यकता की पूर्ति कर सके।
- उपलब्ध भूमि का संपूर्ण डाटा प्राप्त करने के लिये जीपीएस एवं जीआईएस तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। इससे भूमि की उपलब्धता एवं उसके उपभोग की प्राथमिकता तय की जा सकती है।
- सामुदायिक कृषि, कृषि वानिकी, चारागाह, नदियों एवं नहरों के किनारे वृक्षारोपण, पशुपालन आदि का पालन पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ रोजगार संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।
- स्मार्ट शहर के माध्यम से नगरीय जनसंख्या हेतु बेहतर आवास, जल-मल प्रबंधन तथा बेहतर यातायात को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- मानव के अस्तित्व हेतु जंगल एवं प्राणियों का अस्तित्व भी आवश्यक है। वनारोपण के 33 प्रतिशत लक्ष्य की प्राप्ति के साथ ही विभिन्न प्राणियों के सुरक्षा हेतु उनके आवासों में उनका संरक्षण प्रभावी भूमि प्रबंधन के द्वारा ही संभव है।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम जल संसाधन के उचित प्रबंधन पर चर्चा करेंगे-
- ‘जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं’ कथन, जल के उचित प्रबंधन की महत्ता को व्यक्त करता है। चूँकि पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल की लगभग 2.5 प्रतिशत मात्रा ही पीने योग्य है अत: इस अनमोल संपदा का प्रभावी प्रबंधन आवश्यक है।
- कृषि (ड्रिप सिंचाई प्रणाली), उद्योग तथा मानव उपयोग हेतु जल की उचित मात्रा के आवंटन द्वारा इसके दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
- कृषि की उचित तकनीक, क्षेत्र एवं जल की उपलब्धता के अनुकूल फसल आदि के प्रयोग द्वारा कृषि में जल के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- शहरों में जल प्रयोग हेतु उचित मीटरिंग, वर्षा जल का संग्रहण तथा अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण की व्यवस्था द्वारा जल के पुर्नउपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- स्वच्छ जल बीमारियों के प्रसार में कमी लाएगा, जो गरीबी निवारण हेतु एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ जल की उपलब्धता महिलाओं द्वारा जल के प्रबंधन में व्यतीत किये गए गैर-उत्पादक समय में बचत करेगा, जिससे इसका उपयोग उत्पादक कार्यों में किया जा सकेगा। यह महिलाओं के साथ-साथ परिवार की स्थिति में भी सुधार का अवसर प्रदान करेगा।
- तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल को स्वच्छ करने की विधि जल की उपलब्धता को बढ़ा सकती है।
- नदी जोड़ो परियोजना, नदी जल संधियाँ (राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय) आदि प्रभावी जल प्रबंधन की महत्त्वपूर्ण विधियाँ हैं। इनके द्वारा जल संबंधी समस्याओं, जैसे- बाढ़, सूखा एवं कृषि सिंचाई, पेयजल आदि की आवश्यकता का प्रभावी समाधान निकाला जा सकता है।
निष्कर्ष
अंत में संतुलित, संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-जल एवं भूमि की सतत् उपयोगिता को सुनिश्चित करने के लिये कमान क्षेत्र विकास एवं जल प्रबंधन कार्यक्रम’ को प्रोत्साहित करना जरूरी है। इससे इन संसाधनों के सतत् उपयोग को सुनिश्चित किया जा सकेगा। 2030 तक संपोषणीय विकास लक्ष्य में भी जल एवं भूमि के प्रभावी प्रबंधन पर जोर दिया गया है। भारत सहित विश्व के अन्य देश भी अपने विभिन्न कार्यों एवं योजनाओं के माध्यम से पृथ्वी को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
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