आर्थिक और वित्तीय सहयोग के उद्देश्य से गठित जी-20 समूह, भारत के लिये कितना महत्त्वपूर्ण है? ब्यूनस आयर्स में संपन्न जी-20 के 13वें शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा प्रस्तावित 9 सूत्री एजेंडे को स्पष्ट करें।
28 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध
G-20 समूह के गठन की पृष्ठभूमि बताते हुए उत्तर प्रारंभ करें-
G-20 समूह का गठन सदस्य देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय नीति में सहयोग, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना में सुधार, वैश्विक वित्तीय संकट को टालने हेतु उपायों को समाने लाने, सदस्य देशों के आर्थिक विकास और सतत् विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था।
विषय-वस्तु के पहले भाग में जी-20 के उद्देश्यों और इसके 13वें शिखर सम्मेलन के बारे में बताते हुए भारत के लिये इसका महत्त्व बताएंगे-
जी-20 समूह का घोषित लक्ष्य विकसित और विकासशील देशों को एक मंच पर लाना और दुनिया के आर्थिक मुद्दों पर आम राय बनाने की कोशिश करना है। इस वैश्विक अर्थव्यवस्था में वित्तीय मार्केट, टैक्स, राजकोषीय नीति, आर्थिक भगोड़ों से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। इसके अलावा कृषि, रोज़गार, ऊर्जा, पर्यावरण तथा सतत् विकास के मुद्दे भी शामिल हैं।
G-20 का 13वाँ शिखर सम्मेलन कई मायने में खास रहा। इस सम्मेलन के दौरान इस समूह के नेताओं द्वारा G-20 के कार्यों की समीक्षा के साथ ही आने वाले दशक की नई चुनौतियों से निपटने के तरीके और समाधान पर भी चर्चा की गई। सम्मेलन की थीम थी ‘‘न्यायपूर्ण और सतत् विकास के लिये आम सहमति’’। इस दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था, श्रम बाज़ारों के भविष्य और लिंग समानता के मुद्दे पर भी चर्चा की गई। एजेंडे में मैक्रो इकोनॉमिक पॉलिसी, डिजिटल अर्थव्यवस्था, विश्व व्यापार संगठन में सुधार, वित्तीय विनियमन, कराधान और व्यापार के मुद्दे भी शामिल थे। साथ ही भविष्य में विकास के लिये आधारभूत संरचना और खाद्य सुरक्षा पर भी चर्चा की गई है।
भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने की दिशा में भारत को सफलता मिली। प्रधानमंत्री द्वारा पेश की गई 9 सूत्री कार्यवाही योजना को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति भी बनी-
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-
वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल के बीच संपन्न हुई G-20 समूह की शिखर बैठक के नतीजे भारत के लिहाज से सकारात्मक रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवाद और अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर के अलावा आर्थिक प्रतिबंध, तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव; यूरोपीय संघ की मुश्किलें, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अशंति तथा गहराती शरणार्थी समस्या जैसी चुनौतियों के मद्देनज़र इस सम्मेलन से कई उम्मीदें थीं। हालाँकि इसमें ऐसी कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई जिसके आधार पर तात्कालिक तौर पर किसी नतीजे पर पहुँचा जा सके परंतु भविष्य में इसकी बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है।