पहली पीढ़ी (1 जी), दूसरी पीढ़ी (2 जी) और तीसरी पीढ़ी (3 जी) के जैव ईंधन से आप क्या समझते हैं? जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 की विशेषताओं को बताते हुए इसके संभावित लाभ पर चर्चा करें।
24 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
जैव-ईंधन के बारे में बताते हुए उत्तर प्रारंभ करें-
जैव-ईंधन बायोमास से उत्पादित दहनशील ईंधन होते हैं जिनमें मुख्यत: इथेनॉल और बायोडीज़ल आते हैं। इथेनॉल एक एल्कोहल है एवं बायोडीज़ल तेल की तरह होता है।
विषय-वस्तु के पहले भाग में हम पहली, दूसरी और तीसरी पीढ़ी के जैव-ईंधन के बारे में बताएंगे-
पहली पीढ़ी के जैव-ईंधन का उत्पादन सीधे खाद्य फसलों से होता है। इस पीढ़ी के सबसे सामान्य फीड स्टॉक मक्का, गेहूँ एवं गन्ना माने जाते हैं। दूसरी पीढ़ी के जैव-ईंधन एडवांस्ड बायो-फ्यूल के नाम से भी जाने जाते हैं। इनका उत्पादन या तो गैर-खाद्य फसलों से होता है या फिर उन खाद्य फसलों से जिनका उपयोग खाने में किया जा चुका है। जैसे- खराब या उपयोग में लाया जा चुका वनस्पति तेल या जैट्रोफ। तीसरी पीढ़ी के जैव-ईंधन शैवाल आधारित होते हैं जिसमें जैव सीएनजी आदि आते हैं।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 की विशेषताओं को बताते हुए संभावित लाभ पर चर्चा करेंगे-
जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 के अंतर्गत गन्ने का रस, चीनी वाली वस्तुओं, जैसे- चुकंदर, स्वीट सौरगम, स्टार्च वाली वस्तुएँ जैसे-भुट्टा, कसावा, मनुष्य के उपभोग के लिये अनुपयुक्त बेकार अनाज जैसे गेहूँ, टूटा चावल आदि के इस्तेमाल की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन के लिये कच्चे माल का दायरा बढ़ाया गया है।
इथेनॉल उत्पादन द्वारा पेट्रोल के साथ उसे मिलाने के लिये कच्चे माल का दायरा बढ़ाया गया है।
अंत में संतुलित, सारगर्भित एवं संक्षिप्त निष्कर्ष लिखें-
हालाँकि भारत का जैव-ईंधन कार्यक्रम जैव-ईंधन उत्पादन के लिये फीडस्टॉक की लंबे समय तक अनुपलब्धता के कारण प्रभावित हुआ है परंतु जैव-ईंधन के क्षेत्र में विकास की गति के साथ चलना आवश्यक है। भारत में जैव-ईंधनों का रणनीतिक महत्त्व है क्योंकि ये सरकार की वर्तमान पहलों- मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास के अनुकूल है और किसानों की आमदनी दोगुनी करने, आयात कम करने, रोज़गार सृजन, कचरे से धन अर्जन के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को जोड़ने का अवसर प्रदान करता है।