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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय राष्ट्रवाद की जो धारा असहयोग एवं खिलाफत आंदोलनों से निकली थी, वह नेहरू रिपोर्ट पर सर्वसहमति के अभाव में सतत् नहीं रह सकी। नेहरू रिपोर्ट की अनुशंसाओं के आधार पर कथन की विवेचना कीजिये।

    20 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तरः असहयोग और खिलाफत आंदोलन भारतीय राष्ट्रवाद की यात्र में महत्त्वपूर्ण चरण हैं। इनके परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रवाद के चरित्र में बदलाव आया और इसके प्रसार तथा पहुँच का क्षेत्र विस्तृत हुआ। असहयोग आंदोलन के कारण राष्ट्रवाद की भावना महिलाओं, बच्चों, युवाओं, कृषकों आदि तक पहुँची। अभी तक जो भावना उच्च वर्ग या शहरों तक ही सीमित थी, वह अब ग्रामीण क्षेत्रें में भी विस्तृत हुई। वहीं, खिलाफत आंदोलन के परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रदर्शन हुआ।

    किंतु राष्ट्रवाद की यह धारा 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक के अंत तक छिन्न-भिन्न हो गई। नेहरू रिपोर्ट की असफलता ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। नेहरू रिपोर्ट में अनेक सिफारिशें की गईं। जैसे-

    • डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा देना।
    • अधिकारों की ऐसी घोषणा की जाए, जिसमें भारत के सभी नागरिकों के लिये धार्मिक और राजनैतिक स्वतंत्रता का आश्वासन हो।
    • सिंध और उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत, जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हैं, को नए प्रांत बना दिया जाए।
    • इसमें सांप्रदायिक आधार पर अलग निर्वाचक मंडल की मांग को अस्वीकार किया गया था। इसमें सिफारिश की गई कि केवल अल्पमत वाले स्थानों पर ही मुस्लिम वर्ग के लिये स्थान आरक्षित होंगे न कि बहुमत वाले स्थानों पर भी।
    • धर्म का हर प्रकार से राज्य से पृथक्करण।

    यद्यपि ये प्रगतिशील मांगें थीं किंतु मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम वर्ग ने आरक्षित स्थानों की मांग को नहीं छोड़ा और जिन्ना ने ‘चौदह सूत्री’ मांग पेश की जिसके कारण असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन में स्थापित हुई। हिन्दू-मुस्लिम एकता ने सांप्रदायिक स्वरूप धारण कर लिया।

    इसके अतिरिक्त असहयोग और खिलाफत आंदोलन के दौरान अहिंसक और उचित तरीकों से स्वराज की मांग का लक्ष्य निर्धारित किया गया किंतु इसमें डोमिनियन स्टेट्स की मांग ने कॉन्ग्रेस के भीतर ही आक्रोश पैदा कर दिया।

    निष्कर्षतः कह सकते हैं कि ऐसा प्रस्ताव जिसको सभी भारतीयों का व्यापक राजनीतिक समर्थन प्राप्त हो, को तैयार करने के लिये नेहरू रिपोर्ट के रूप में किया गया प्रयास असफल रहा। यद्यपि यह रिपोर्ट स्वयं में प्रगतिशील विचारों (वयस्क मताधिकार, लैंगिक समता, धर्मनिरपेक्षता) को समाहित किये हुए थी किंतु तत्कालीन परिस्थितियों ने इसे असफल बना दिया। इसके परिणामस्वरूप उपजी सांप्रदायिकता अंततः विकृत रूप धारण कर भारत के विभाजन के रूप में परिलक्षित हुई।

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