जाति पंचायतों द्वारा अपने ‘सामानांतर न्यायिक आपूर्ति प्रणाली’ (कंगारू कोर्ट) के माध्यम से संकीर्ण पुरातन प्रथाओं को बलात् मनवाने हेतु ‘सामाजिक बहिष्कार एवं अन्य हिंसात्मक गतिविधियों की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने में महाराष्ट्र प्रॉहिबिशन ऑफ पीपुल फ्रॉम सोशल बॉयकॉट (प्रिवेंशन, प्रॉहिबिशन एंड रिड्रेस्सल) बिल, 2016 किस सीमा तक सहायक सिद्ध हो सकता है?
उत्तर :
भारत में समय-समय पर जाति पंचायतों द्वारा समानांतर न्यायिक आपूर्ति प्रणाली के माध्यम से सामाजिक बहिष्कार, अपमान, ऑनर किंलिंग जैसी घृणित एवं हिंसात्मक गतिविधियाँ की जाती रही हैं। इन गतिविधियों पर नियंत्रण एवं इन्हें समाप्त करने के लिये महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र प्रोहिबिशन ऑफ पीपुल फ्रॉम सोशल बॉयकॉट बिल-2016 नामक कानून बनाया।
इस कानून के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैंः
- यह किसी व्यक्ति या जाति पंचायत जैसे समूह द्वारा व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के सामाजिक बहिष्कार का निषेध करता है।
- सामाजिक बहिष्कार को संज्ञेय लेकिन जमानती अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।
- आरोप पत्र दाखिल होने के छः महीने के अंदर सुनवाई पूरी होनी चाहिये।
- सामाजिक बहिष्कार जैसी सजा से पीडित़ व्यक्ति या उसके परिवार का कोई सदस्य पुलिस या मजिस्ट्रेट के सम्मुख सीधे शिकायत दर्ज करा सकता है।
- इसके तहत् अपराधी को सात साल की सजा या 5 लाख रुपए जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।
- वस्तुतः जाति पंचायतें धार्मिक परंपराएँ, अंतरजातीय विवाह, जीवन शैली, पहनावा या रीति रिवाजों के नाम पर संकीर्ण पुरातन प्रथाओं को बलात् मनवाने के लिये सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक दंड, अवमानना तथा मृत्यु दंड जैसी सजा अपनी सामानांतर न्यायिक आपूर्ति प्रणाली के माध्यम से देती हैं।
- ऐसे में महाराष्ट्र द्वारा बनाया गया कानून एक प्रगतिशील कदम है। यह न केवल उचित कानून-व्यवस्था की स्थिति सुनिश्चित करेगा बल्कि अनुच्छेद 15 एवं 17 के तहत प्राप्त मूल अधिकारों के संरक्षण में भी सहायक होगा।
- इस कानून की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है जागरूकता की कमी। साथ ही, कुछ समुदाय, विशेषकर जनजातीय समुदाय, पीडि़त व्यक्ति भी बहिष्कार जैसे दंड को अपनी प्रथाओं के अनुरूप मानकर उसका प्रतिरोध नहीं करते हैं। अतः इस संबंध में लोगों में जागरूकता लाकर इस कानून की प्रभावशीलता में वृद्धि की जा सकती है।
- निष्कर्षतः उपर्युक्त कानून सामाजिक बहिष्कार एवं अन्य हिसांत्मक गतिविधियों की बढ़ती प्रवृत्ति पर अकुंश लगाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा तथा सामाजिक न्याय को स्थापित करेगा। इस तरह के कानून भारत के अन्य राज्यों में भी बनाए जाने चाहिये।