‘समुद्री ऊष्मा बजट’ अवधारणा को स्पष्ट करें। वैश्विक तापन की समकालीन प्रवृत्ति इसे किस प्रकार असंतुलित कर रही है?
17 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणपृथ्वी ऊष्मा का न तो संचय करती है और न ही ह्रास करती है। यह अपने तापमान को स्थिर रखती है। ऐसा तभी संभव है, जब सूर्य विकिरण द्वारा सूर्यताप के रूप में प्राप्त ऊष्मा एवं पार्थिव विकिरण द्वारा अंतरिक्ष में संचरित ताप बराबर हो। यह पृथ्वी के ऊष्मा बजट से ही संभव होता है।
‘समुद्री ऊष्मा बजट’ महासागरों के जल द्वारा ताप को ग्रहण करने और छोड़ने को इंगित करता है। महासागरीय जल द्वारा प्राप्त ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य ही है। जल धरातल की अपेक्षा धीरे-धीरे गर्म होता है, इसी कारण महासागरीय जल में दैनिक तापांतर 1° से. से अधिक नहीं होता है।
वार्षिक तापांतर प्रचलित पवनों, महासागरीय धाराओं और सूर्यताप में परिवर्तन आदि के द्वारा प्रभावित होता है। चूँकि महासागर पृथ्वी के वृहद् क्षेत्र पर विस्तृत है, इसलिये ये तापांतर सूर्य की 11 वर्षीय चक्रीय प्रक्रिया द्वारा भी प्रभावित होता है।
महासागरीय जल की ऊष्मा का द्वितीय स्रोत रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं से प्राप्त ऊष्मा, पृथ्वी के आंतरिक क्रोड से प्राप्त ऊष्मा, समुद्री धाराओं के घर्षण से प्राप्त ऊष्मा और नाभिकीय अभिक्रियाओं से प्राप्त ऊष्मा आदि हैं।
समुद्री जल की ऊष्मा का ह्रास पश्च रेडियेशन, वाष्पोत्सर्जन, महासागर एवं वायुमण्डल के मध्य सीधा ऊर्जा हस्तांतरण आदि के द्वारा होता है। किंतु पिछले 50 वर्षों में वैश्विक तापन और हरित ग्रह प्रभाव ने महासागरीय जल के तापमान को भी प्रभावित किया है। इससे ‘समुद्री ऊष्मा बजट’ प्रभावित हुआ है।
इसके अतिरिक्त, महासागरीय अम्लीकरण ने भी इस ऊष्मा बजट को प्रभावित किया है। ध्रुवीय बर्फ का पिघलना और जलीय जंतुओं के प्रवासन प्रारूपों में बदलाव इसके स्पष्ट प्रभावों के तौर पर देखे जा सकते हैं।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि ‘समुद्री ऊष्मा बजट’ जलवायु की अभिक्रिया का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यह पृथ्वी के ऊष्मा बजट को संतुलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यद्यपि जलवायु परिवर्तन ने इसे प्रभावित किया है और महासागरीय पारिस्थितिकी नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है। मगर मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।