मतदाता के चुनावी अधिकार से क्या आशय है? राष्ट्रपति के चुनाव एवं राज्यसभा के चुनाव के संदर्भ में मतदाताओं के स्वविवेक से मतदान के अधिकार के संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्णयन पर प्रकाश डालें।
17 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थामतदाता का चुनावी अधिकार एक कानूनी अधिकार है। इसे भारतीय दंड सहिता की धारा 171 (A) B के तहत परिभाषित किया गया है। मतदाता के चुनावी अधिकार के अंतर्गत किसी व्यक्ति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने या न खड़ा होने, नाम वापस लेेने, किसी चुनाव में मतदान करने या मतदान से अलग रहना शामिल है।
उच्चतम न्यायालय ने कुलदीप नैयर बनाम भारत संघ मामले में निर्णय दिया था कि राज्यसभा के चुनाव के मामले में मतदाताओं के ऊपर दसवीं अनुसूची के प्रावधान लागू नहीं होंगे। अतः राज्य विधानसभा का कोई सदस्य अपनी पार्टी के निर्देशों के विपरीत मतदान करने के लिये स्वतंत्र है।
इससे पहले एक अन्य मामले, पशुपतिनाथ सुकुल बनाम नेमचद्र जैन केस में उच्चतम न्यायालय का मानना था कि राज्यसभा चुनाव के लिये होने वाला मतदान न तो विधायी गतिविधि है और न राज्य विधानसभा के अंदर कोई कार्रवाई। इसी तरह, राष्ट्रपति पद का चुनाव जिसमें संसद के दोनों सदनों एवं राज्य विधानसभाआें के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं, सदन की कार्रवाई का हिस्सा नहीं होता है।
उच्चतम न्यायालय के उपर्युक्त निर्णय के आलोक में राष्ट्रपति पद के चुनाव एवं राज्यसभा चुनाव के संदर्भ में मतदाताओं के स्वविवेक से मतदान का अधिकार भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के दायरे में नहीं आएगा और इस प्रकार मतदाताओं को वोट देने या न देने की स्वतंत्रता है।
वस्तुतः चुनाव लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की आत्मा होती है। अतः इसे जीवंत एवं लोकतांत्रिक बनाए रखने के लिये मतदाताओं को बिना भय एवं दबाव के स्वतंत्र रूप से चुनाव का अधिकार होना आवश्यक है जिसे उच्चतम न्यायालय ने अपने प्रगतिशील निर्णयों के माध्यम से राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के चुनाव तक विस्तारित किया।