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प्रश्न :
1967 का आम चुनाव कई मामलों में विशिष्ट था, जिसमें कुछ ऐसी नई प्रवृत्तियों का जन्म हुआ जिन्होंने भारतीय राजनीति पर मूलगामी एवं गहरी छाप छोड़ी। विवेचना करें।
14 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र होने के पश्चात् संघीय ढाँचे के तहत भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना हुई। शुरुआती दौर में कॉन्ग्रेस पार्टी का केंद्र एवं राज्य सरकारों पर एकाधिकार रहा, क्योंकि लोग कॉन्ग्रेस को भारतीय स्वतंत्रता का मूल कारक मानते थे। पंरतु 1967 का आम चुनाव जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं की मृत्यु के बाद हो रहा था। कॉन्ग्रेस के भीतर भी सत्ता के लिये आपसी खींच-तान चल रही थी। 1967 का आम-चुनाव ‘नेहरू के बाद कौन’ का भी उत्तर देने जा रहा था।
इस चुनाव के उपरांत नई प्रवृत्तियों का जन्म हुआ जिनका भारतीय राजनीति के ऊपर दूरगामी प्रभाव पड़ा, इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैंः
- 1967 के चुनाव में लोकसभा में कॉन्ग्रेस की सीटों की संख्या घटकर 284 रह गई थी तथा 8 राज्यों में गैर-कॉन्ग्रेसी सरकारों की स्थापना हुई। यह भारतीय राजनीति के ऊपर कॉन्ग्रेस के एकाधिकार के खत्म होने शुरुआत थी।
- जिन राज्यों में गैर-कॉन्ग्रेसी सरकार की स्थापना हुई थी वहाँ कोई विशेष दल स्पष्ट बहुमत नहीं पा सका था, अतः गठबंधन सरकारों की स्थापना एवं गठबंधन हेतु विपरीत विचारधारा के दल भी साथ आए।
- सत्ता के लालच में दल-बदल की प्रवृत्ति का जन्म हुआ। विधायकों की स्वामी-भक्ति स्थायी नहीं रही तथा अल्पकालिक सरकारों की स्थापना हुई। 1967-70 के मध्य बिहार में सात तथा उत्तर प्रदेश में चार सरकारों का गठन किया गया। इस पर 1986 के दलबदल निषेध अधिनियम के बाद लगाम लगाई जा सकी।
- कॉन्ग्रेस के भीतर भी शक्ति का निर्णय इस चुनाव के द्वारा हो गया था। सिंडीकेट गुट के नेता के- कामराज सहित उनके सभी सहयोगी चुनाव हार गए तथा इंदिरा निर्विवाद रूप से कॉन्ग्रेस की नेता के रूप में उभर कर सामने आई।
1964 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से अलग होकर सीपीएम ने नक्सली आंदोलन की शुरुआत की थी। सीपीएम ने 1967 के चुनावों में हिस्सा लिया तथा पश्चिम बंगाल में गठबंधन सरकार की स्थापना की। सीपीएम ने अपने बागी नेताओं के विरोध के दमन के लिये सरकारी मशीनरी का उपयोग किया परंतु यह नक्सली आंदोलन अन्य राज्यों में भी फैल गया, जो आज भी एक बड़ी समस्या है।
1967 के आम चुनाव में 61ः वोटिंग हुई थी जो कि अब तक सर्वाधिक थी। 1962 में चीन तथा 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध, खाद्यान्न संकट तथा नेहरू जैसे सर्वमान्य नेता की मृत्यु आदि बड़ी समस्याओं से जूझने के बावजूद भारत में लोकतंत्रत्मक प्रणाली अक्षुण्ण रही। यद्यपि कॉन्ग्रेस का प्रभुत्व कम हुआ था परंतु कमजोर विपक्ष के कारण अब भी यह सर्वाधिक प्रभावशाली पार्टी थी तथा ‘नेहरू के बाद कौन’ का उत्तर इंदिरा गांधी के रूप में मिल चुका था।
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