प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की आधारभूत कल्पनाओं को स्पष्ट करते हुए इसके कारणों की चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की चर्चा करें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में सिद्धांत की आधारभूत कल्पनाओं को स्पष्ट करते हुए इसके कारणों की चर्चा करें।
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प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के अनुसार समस्त पृथ्वी पर विवर्तनिकी शक्तियाँ काम कर रही हैं जिनके प्रभावाधीन भू-पर्पटी का ऊपरी भाग नर्म दुर्बलतामंडल पर भ्रमण कर रहा है। प्लेट शब्द का प्रयोग सबसे पहले कनाडा के विख्यात भू-वैज्ञानिक जे. टूजो विल्सन ने सन् 1955 में किया था।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत की निम्नलिखित तीन आधारभूत कल्पनाएँ हैं:
- समुद्र अधस्तल का विस्तारण होता है। महासागरीय अधस्तलों के मध्य में स्थित कटक लावा निष्कासन में सक्रिय हैं। मध्यवर्ती महासागरीय कटक महासागर के अधस्तल पर स्थित दरारें हैं, जहाँ से पिघले शैल बाहर निकल कर नवीन भू-पर्पटी का निर्माण कर रहे हैं। कटकों से बाहर की ओर भू-पर्पटी का विस्तार हो जाता है और महासागरीय द्रोणी चौड़ी हो जाती है।
- पिछले लगभग 60 करोड़ वर्षों से पृथ्वी का क्षेत्रफल लगभग समान रहा है और इसके अर्धव्यास में 5% से अधिक की वृद्धि नहीं हुई है। दूसरे शब्दों में भू-पटल का नष्ट हुआ क्षेत्रफल निर्मित क्षेत्रफल के बराबर होता है।
- भू-पटल का नवनिर्मित भाग प्लेट का अभिन्न अंग बन जाता है। नवनिर्मित भाग महाद्वीपीय या महासागरीय कोई भी हो सकता है।
प्लेट विवर्तनिकी के मुख्य कारण:
- तापीय : महासागरीय मध्य कटकों पर ऊष्मा का प्रवाह बड़े पैमाने पर होता है और कटकों से दूर जाने पर इसमें कमी आ जाती है। इसके विपरीत महासागरीय खाइयों पर किसी प्रकार का ऊष्मा प्रवाह नहीं होता हालाँकि निकटवर्ती द्वीपों में अधिक गहराई पर ऊष्मा का प्रवाह होता है।
- प्रवाह की गति : महासागरीय मध्य कटकों के दोनों ओर समुद्र अधस्तल का विस्तार एक समान होता है और विस्तार की गति 1-6 सेमी. प्रतिवर्ष होती है। महासागरीय खाइयों में 5-15 सेमी. प्रतिवर्ष की दर से भू-पटल का ह्रास होता है।
- महासागरीय अधस्तल का निर्माण : महासागरीय मध्य कटक पर अधस्तल के निर्माण की प्रक्रिया कोई भी हो, नए अधस्तल की मोटाई लगभग एक जैसी होती है। इस पर अधस्तल के विस्तार का कोई प्रभाव नही पड़ता।
- महासागरीय स्थलाकृति : महासागरीय मध्यवर्ती कटक महासागरीय नितल से 2-4 किमी. ऊपर उठा हुआ होता है। इसके दोनों ओर ढाल लगभग एक समान होता है। कटक से दूर जाने पर ढाल प्रवणता कम होती जाती है।
- गुरुत्व : गुरुत्व के अध्ययन से पता चलता है कि महासागरीय मध्य कटक समस्थिति संतुलन की अवस्था में है। इसके विपरीत खाइयों में समस्थिति संतुलन बिल्कुल भी नहीं है और वहाँ पर अधिकतम गुरुत्वीय विसंगतियाँ पाई जाती हैं।
- स्थलमंडल की दृढ़ता : स्थलमंडल काफी दृढ़ है और बड़ी-बड़ी प्लेटें भी बिना विकार के काफी दूर तक जा सकती हैं। कई प्लेटों की लंबाई उनकी मोटाई से बीस गुना तक अधिक होती है। लंबाई-मोटाई के इस अनुपात के अंतर्गत कोई भी संपीडन अथवा तनाव की शक्ति इसके एक किनारे से दूसरे किनारे तक नहीं जा सकती, यदि प्लेट के आधार पर घर्षण बहुत ही कम हो।