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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    इलैक्ट्रिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) की विश्वसनीयता पर उठते प्रश्न कहाँ तक तर्कसंगत हैं? इस संदर्भ में चुनाव आयोग की क्या प्रतिक्रिया रही है?

    03 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    कुछ समय पहले हुए उत्तर प्रदेश एवं पंजाब के विधानसभा चुनावों के परिणामों की घोषणा के पश्चात् हारने वाली राजनीतिक पार्टियों ने इन चुनावों के दौरान प्रयुक्त ई.वी.एम. मशीनों से छेड़छाड़ किये जाने का आरोप लगाया एवं चुनाव रद्द कर  दोबारा ‘बैलेट पेपर’ से चुनाव कराये जाने की माँग की। पहले भी ई.वी.एम. में संभावित छेड़छाड़ के मसले को मद्रास उच्च न्यायालय (2001), केरल उच्च न्यायालय (2001), दिल्ली उच्च न्यायालय (2004) और कर्नाटक उच्च न्यायालय (2004) में उठाया जा चुका है।

    सभी उच्च न्यायालयों ने भारत में हुए चुनावों में ई.वी.एम. के उपयोग में निहित तकनीकी सृदृढ़ता एवं प्रशासनिक बंदोबस्त के समस्त पहलुओं पर गौर करने के बाद यह कहा था कि भारत में ई.वी.एम. विश्वसनीय, भरोसेमंद एवं पूरी तरह से छेड़-छाड़ मुक्त है। हालाँकि तकनीकी विशेषज्ञ ई.वी.एम. से छेड़-छाड़ की आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं करते। उनका कहना है कि यह सच कि इन मशीनों के इंटरनेट से जुड़े न होने से इनमें साइबर क्राइम की कोई तरकीब काम नहीं करेगी, लेकिन इनकी सुरक्षा में तैनात लोगों की मदद से वोटों की गिनती के दौरान पहले इनके लॉगरिथ्म (Logarithm) या मैकेनिज़्म को छेड़ा जा सकता है।

    ई.वी.एम. से छेड़खानी के आरोपों को चुनाव आयोग द्वारा सिरे से खारिज किया जाता रहा है। आयोग के अनुसार ई.वी.एम. एक ‘स्टैंड एलोन (Stand alone)' मशीन है। इसकी सुरक्षा के मद्देनज़र इसे किसी नेटवर्क से नहीं जोड़ा गया है। अतः इसमें छेड़-छाड़ करने के लिये एक-एक मशीन से छेड़-छाड़ करनी पड़ेगी। पुनः, इन मशीनों में उपयोग किये गए प्रोग्राम (सॉफ्टवेयर) को वन टाइम प्र्रोग्राम या मास्क्ड चिप का रूप दे दिया जाता है ताकी इसमें किसी भी तरह का फेरबदल अथवा छेड़-छाड़ संभव न हो। इसके अतिरिक्त, सुरक्षा उपायों की एक विस्तृत एवं चरणबद्ध प्रशासनिक प्रणाली और प्रक्रियात्मक निगरानी की पुख्ता व्यवस्था की जाती है। यथा-

    • प्रत्येक चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ई.वी.एम. बनाने वाली कंपनियों के इंजीनियरों द्वारा प्रत्येक ई.वी.एम. मशीन की प्रथम स्तरीय जाँच की जाती है। 
    • इसके बाद ई.वी.एम. की प्लास्टिक कैबिनेट नियंत्रण इकाई सील की जाती है। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि इस पर हस्ताक्षर करते हैं और उसे स्ट्रांगरूम में रखा जाता है।
    • इसके तदुपरांत चुनाव में इस्तेमाल से पूर्व भी अनेक चरणों की जांच सभी दलों के प्रतिनिधियों की देख-रेख में ही होती है। अतः छेड़-छाड़ की संभावना नगण्य रहती है। 

    इस प्रकार, निर्वाचन आयोग के स्पष्टीकरण से प्रतीत होता है कि ई.वी.एम. की विश्वनीयता पर उठते प्रश्न निराधार हैं। तथा, लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनावों के आयोजन के लिये प्रतिबद्ध  भारत का निर्वाचन आयोग ई.वी.एम. के सुरक्षित कामकाज को लेकर पूरी तरह संतुष्ट है तथा ई.वी.एम. से छेड़-छाड़ के आरोपों को पूरी तरह नकाराता है।

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