क्या 2008 की वैश्विक मंदी के पश्चात् की वैश्विक स्थितियाँ एक नई 'विश्व-व्यवस्था' के उदय का संकेत करती हैं? इस उदित होती नई विश्व-व्यवस्था में भारत की स्थिति की विवेचना करें।
07 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधवैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के मध्य शक्ति-संतुलन एवं सत्ता विभाजन का क्रम विश्व-व्यवस्था कहलाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्ति से लेकर शीत युद्ध की समाप्ति तक विश्व व्यवस्था मूलतः अमेरिका और सोवियत संघ के इर्द-गिर्द केंद्रित रही। शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् अमेरिका विश्व की केन्द्रीय शक्ति बना। परंतु, 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी, वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ‘इनवार्ड पॉलिसी’ तथा भारत व चीन जैसे एशियाई देशों के तेजी से उभरने ने एक नई विश्व व्यवस्था के निर्माण के संकेत दिये हैं। यह नई विश्व व्यवस्था बहुध्रुवीय प्रतीत हो रही है, जिसमें शक्ति के कई केंद्र हैं।
नई विश्व व्यवस्था में भारत की स्थितिः
भारत की भौगोलिक अवस्थिति, अर्थव्यवस्था की मजबूत स्थिति, बड़ा बाजार तथा जनांकिकीय लाभांश इसे वैश्विक आर्थिक पटल पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाते हैं।
वर्तमान में भारत ने गुटनिरपेक्षता (NAM) की रणनीति को बदलकर बहुपक्षीयता (Multi-alignment/NAM 2.0) की नीति अपना रखी है, इससे भारत की स्थिति मजबूत हुई है।
विदेशी नीति के स्तर पर भारत ने पड़ोसी देशों से संबंधों को मजबूत व मधुर बनाने की सशक्त पहलें की हैं एवं विभिन्न देशों से अलग-अलग क्षेत्रों में समझौते किये हैं। अमेरिका, रूस, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्राँस, इज़राइल जैसे देशों के साथ-साथ ईरान, अफगानिस्तान और यू.ए.ई. जैसे देशों के साथ भी विभिन्न समझौते किये हैं। इससे भारत की वैश्विक स्तर पर साख बढ़ी है।
भारत को एम.टी.सी.आर. में सदस्यता मिलने तथा सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी ने भी भारत को वैश्विक स्तर पर एक बड़ी ताकत के रूप में पहचान दी है।
निष्कर्षतः यह कह सकते हैं कि वर्तमान में उदित होती नई विश्व व्यवस्था में पूरा विश्व एक ऐसी बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रहा है, जिसमें भारत, चीन जैसे विकासशील देश शक्ति के नए केंद्र के रूप में उभर रहे हैं।