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प्रश्न :
सर्वोच्य न्यायालय का ‘इंटरनेट तक पहुँच का अधिकार बनाम PCPNDT एक्ट की धारा 22’ के संबंध में क्या मत है? स्पष्ट करें। साथ ही यह भी बताएँ कि वर्तमान में इंटरनेट के माध्यम से लिंग चयन के लिये किये जाने वाले विज्ञापनों की रोकथाम के क्या प्रयास किये जा रहे हैं?
15 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
सर्वोच्य न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि नागरिको को ज्ञान और सूचना प्राप्त करने के लिये इंटरनेट तक पहुँच बनाने का अधिकार है। इस अधिकार में तब तक कटौती नहीं की जा सकती जब तक कि यह कानूनी सीमा का अतिक्रमण नहीं करता। इस प्रकार केवल उन्हीं विज्ञापनों को प्रतिबंधित किया जा सकता है जो PCPNDT एक्ट की धारा 22 को उल्लंघन करते हों।
PCPNDT एक्ट, 1994 की धारा 22 के तहत जन्म पूर्व लिंग निर्धारण से संबंधित विज्ञापनों का निषेध किया गया है। इस धारा के प्रावधानों के आधार पर सरकार ने इंटरनेट के माध्यम से किये जाने वाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया जिस पर सर्वोच्च न्यायालय का मत है कि यह इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता।
वर्तमान में इस प्रकार के विज्ञापनों को रोकने के लिये निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं-- तीन सर्च इंजनों माइक्रोसॉफ्ट, गूगल इंडिया और याहू इंडिया ने सर्वोच्च न्यायालय को यह आश्वासन दिया है कि वे PCPNDT एक्ट का उल्लंघन करने वाले विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेंगे। इसके लिये उन्होंने विशेषज्ञों को नियुक्त किया है।
- सरकार ने राज्य स्तर पर नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की है जो इस अधिनियम की धारा 22 का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने के लिये कार्य करेंगे। यदि नोडल अधिकारी को कोई आपत्तिजनक सामग्री नजर आती है तो वे सर्च इंजन के विशेषज्ञों से बात करेंगे और ये विशेषज्ञ इस सामग्री को 36 घंटों के अंदर हटा देंगे।
इस प्रकार, जहाँ इंटरनेट तक पहुँच बनाने के अधिकार को भी संरक्षित रखा गया एवं केवल गैर-कानूनी विज्ञापन-सामग्री को प्रतिबंधित कर ‘इंटरनेट तक पहुँच का अधिकार बनाम PCPNDT एक्ट’ के मध्य संतुलन बनाने का प्रयास किया गया।
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