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प्रश्न :
राजभाषा पर गठित संसदीय समिति की हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई सिफारिशों का उल्लेख करते हुए बताएँ कि इन पर अमल करना कितना चुनौतिपूर्ण सिद्ध होगा?
21 Apr, 2016 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
राजभाषा पर गठित संसदीय समिति की 9वीं रिपोर्ट में हिन्दी केा अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने के लिये अनेक सिफारिश की हैं जिनमें से कई सिफारिशों को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है। ऐसी प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैं-
- राष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्रियों सहित सभी गणमान्य व्यक्ति, जो हिन्दी पढ़ सकते हैं और बोल सकते हैं, उनसे अनुरोध किया गया है कि वे अपने भाषण एवं बयान केवल हिन्दी में ही दे।
- एयर इंडिया टिकटों पर हिन्दी का इस्तेमाल करने तथा एयरलाइन यात्रियों के लिये हिन्दी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों को शामिल करने की सिफारिश को भी स्वीकार कर लिया गया। वायुयानों में होने वाली घोषणाएँ पहले हिन्दी, फिर अंग्रेजी में होंगी।
- सभी सरकारी और अर्द्ध-सरकारी संगठनों को अपने उत्पादों के नामों का उल्ल्ेख हिन्दी में करना होगा।
- CBSE स्कूलों एवं केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 10 तक हिन्दी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश को सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान कर दी गई।
हालाँकि, इनमें से अधिकांश विषय ऐसे हैं जिन पर किसी प्रकार की आपत्ति उठने की संभावनाएँ नगण्य है किंतु, गणमान्य व्यक्तियों के भाषण, विद्यालयों में हिन्दी अनिवार्य करने जैसे निर्णयों को लागू करने के समक्ष कई बड़ी चुनौतियाँ हैं-
- गैर हिन्दी भाषी राज्यों विशेषकर पूर्वोतर और दक्षिण भारत के लोग हिंदी भाषा में दिए गए भाषणों की गहराई को ठीक से समझ नहीं पाते।
- भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुभाषिक राष्ट्र है जहाँ किसी एक भाषा की प्रधानता नहीं है। यहाँ केवल 40% जनसंख्या द्वारा हिंदी बोली जाती है हिंदी को सर्वस्वीकार्य बनाना एक चुनौती है।
- इस प्रकार के फैसलों से जहाँ एक तरफ गैर-हिंदी भाषी राज्यों में अलगाव का भाव पैदा हो सकता है वहीं क्षेत्रीय भाषाएँ एवं बोलियाँ जो लुप्त होती जा रही है, उन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यद्यपि, हिंदी भारत की केवल 40% जनसंख्या द्वारा ही बोली जाती है लेकिन पूर्वोतर एवं दक्षिण भारत सहित सभी राज्यों में हिंदी समझी जाती है। दूसरी ओर, इस फैसले में किसी अनिवार्यता को शामिल नहीं किया गया क्योंकि, गणमान्य व्यक्तियों से हिंदी में भाषण के लिये केवल अनुरोध किया गया है तथा विद्यालयों में 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के लिये केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों से बात करके नीति बनाने का प्रावधान किया गया है। अतः यह फैसला संविधान की मूल भावना का ही सम्मान करता है अतः इसे क्षेत्रीय बोलियों एवं भाषाओं के खिलाफ नहीं देखा जाना चाहिये। इसके अलावा ‘त्रिभाषा सूत्र’ के उपयुक्त क्रियान्वयन पर जोर देकर क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के साथ-साथ हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने के लिये संसदीय समिति की सिफारिशों पर अमल करना एक सकारात्मक कदम होगा।
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