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प्रश्न :
हाल ही में लोकसभा द्वारा 123वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित किया गया है जिसमें ‘सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्जा देने का प्रावधान है। किंतु, इस विधेयक के कई प्रावधान ऐसे हैं जिनसे कई समस्याएं पैदा हो सकती है। स्पष्ट करें।
28 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
लोकसभा ने पिछड़ा वर्ग के लिये नया राष्ट्रीय आयोग बनाने के लिये 123वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित किया है। इसके तहत ‘सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग’ के गठन का प्रावधान है जो वर्तमान ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ का स्थान लेगा। इस संविधान संशोधन विधेयक के कानून बन जाने के पश्चात पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिल जाएगा, जैसा कि वर्तमान में अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग को प्राप्त है। किंतु, इस विधेयक के प्रावधानों के लागू होने से कई समस्याएँ पैदा हो सकती हैं-
- पिछड़ेपन को पारिभाषित करने की जिम्मेदारी नए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (New NCBC) को नहीं दी गई है। इसलिये यह आयोग पिछड़े वर्गों की पहचान करने एवं उनकी मौजूदा चुनौतियों को हल करने में कितना सफल हो पाएगा, इस पर प्रश्न चिह्न है।
- जिस प्रकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग दलितों एवं आदिवासियों पर किये जाने वाले अत्याचारों का संज्ञान लेता है उसी प्रकार प्रस्तावित आयोग भी पिछड़ी जातियों के विरूद्ध होने वाले अत्याचार और शोषण का संज्ञान लेगा। इस प्रकार यदि किसी शोषणकारी घटना में एक पक्ष पिछड़ा वर्ग हो एवं दूसरा SC/ST हो तो दोनों ही आयोग अपने-अपने पक्षों का संज्ञान लेते हैं तो दो संवैधानिक निकायों में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- भारत की ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को देखते हुए पिछड़ों और SC/ST को एक ही तराजु पर तौलना जायज नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि पिछड़े वर्गों के अंतर्गत आने वाली अनेक जातियों ने भी SC/ST का शोषण किया है।
इस प्रकार, यद्यपि पिछड़े वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने एवं उसकी शक्तियाँ बढ़ाने की मांग वर्षों से की जा रही थी लेकिन आदिवासियों/दलितों तथा पिछड़े वर्गों की जातियों में फर्क करना आवश्यक है ताकि समाज के बहिष्कृत तबके को सामाजिक न्याय प्रदान कर आरक्षण के मूल उद्देश्य को पूरा किया जा सके।
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