सवोर्च्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में किसी भी राष्ट्रीय अथवा राज्य राजमार्ग के 500 मीटर के दायरे में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है। यह निर्णय एक तरफ ‘ज्यूडीशियल ऑवररीच (Judicial Overreach)’ का उदाहरण है तो दूसरी तरफ इसका व्यापक प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव भी पड़ने की संभावना है। व्याख्या करें।
03 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थासड़क सुरक्षा पर दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग के 500 मीटर के दायरे में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है। यह प्रतिबंध शराब की खुदरा दुकानों, हॉटलों, रेस्तराँ और बार सभी पर लागू होगा।
भारतीय संविधान में राज्य के अंगों ‘कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका’ के बीच शक्तियों का पृथक्करण किया गया है ताकि राजनीतिक लोकतंत्र के लिये आवश्यक शक्ति-संतुलन बना रहे। संविधान के अनुसार नीति निर्माण विधायिका का कार्य है, नीति कार्यान्वयन कार्यपालिका का कार्य है तथा नीतियों की वैधानिकता का परीक्षण न्यायपालिका का कार्य है। इस मामले में न्यायपालिका अपनी सीमा से बाहर जाकर कार्यपालिका अधिकार क्षेत्र में आने वाले कार्य में हस्तक्षेप कर रही है अतः इसे ‘न्यायिक ऑवररीच’ कहा गया है। यहाँ एक तरफ ऐसे निर्णयों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता का सवाल है तो दूसरी ओर यह भी समस्या है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय कानूनों की तरह बाध्यकारी होते हैं, जो तब तक नहीं बदले जा सकते जब तक कि संबंधित पीठ अपने निर्णय की समीक्षा न करे अथवा एक संवैधानिक पीठ इस पर विचार न करे।
इस निर्णय के संभावित प्रतिकूल आर्थिक प्रभावः
निष्कर्षः लोकतंत्र में स्वतंत्र न्यायपालिका सदैव महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है क्योंकि वह कार्यपालिका एवं विधायिका पर नियंत्रण रखती है। लेकिन, न्यायपालिका को अपनी शक्तियों के दुरूपयोग से बचना चाहिये एवं अपने दायरे में ही रहना चाहिये। जैसा कि फ्राँसिस बेकन ने कहा है "न्यायाधीशों की याद रखना चाहिये कि उनका कार्य ‘जूस डिक्रे (Jus dicere)’ है न कि ‘जूस डेरे (Jus dere)’ अर्थात कानून की व्याख्या करना है न कि कानून बनाना।"