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प्रश्न :
"तुर्की का झुकाव पारंपरिक रूप से पाकिस्तान की तरफ होने के बावजूद तुर्की के राष्ट्रपति की भारत यात्रा को दोनों देशों के मध्य आर्थिक एवं कूटनीतिक सहयोग बढ़ाने के एक हिस्से के तौर पर देखा जा सकता है।" चर्चा करें।
05 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
तुर्की के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। औपनिवेशिक युग की समाप्ति के पश्चात् भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में तुर्की के साथ मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये। इसके पश्चात् दो प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी एवं अटल बिहारी वाजपेयी ने भी तुर्की की यात्रा कर संबंध मजबूत बनाने के प्रयास किये। तुर्की के राष्ट्रपति ‘एर्दोगान’ की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
आधुनिक तुर्की पारंपरिक रूप से पाकिस्तान का समर्थक रहा है एवं पाकिस्तान के साथ इसके सैन्य संबंध भी हैं। तुर्की के राष्ट्रपति ने भारत यात्रा से पूर्व एक साक्षात्कार में कश्मीर मुद्दे पर बहुपक्षीय वार्ता का सुझाव दिया था एवं परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत के साथ पाकिस्तान की सदस्यता की भी वकालत की थी। ये दोनों बातें भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप नहीं थी।
हालाँकि तुर्की के राष्ट्रपति के इस दृष्टिकोण के बावजूद भारत निराश नहीं हुआ, क्योंकि भारत एवं तुर्की के मध्य अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर व्यापक सहयोग की संभावनाएँ मौजूद हैं। अतः भारत ने इन क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित किया-
- दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने की भरपूर संभावनाएँ है। तुर्की में भारतीय निवेश लगातार बढ़ रहा है। महिंद्रा एंड महिंद्रा तथा एस्सार जैसी कंपनियों के साथ-साथ दवा, वस्त्र आदि क्षेत्रों में भारतीय निवेश बढ़ रहा है। ओएनजीसी-विदेश दक्षिण तुर्की एवं अजरबैजान के बीच तेल एवं गैस पाइपलाइन के सहयोगी है। दोनों देशों के मध्य लगभग 6 अरब डॉलर का कारोबार है जिसमें भारत को व्यापार अधिशेष हासिल है।
- आर्थिक मंदी, आतंकवाद और पारंपरिक बाजार रहे यूरोप के साथ तुर्की के बढ़ते तनाव के बीच तुर्की को भी नए बाजारों की आवश्यकता है।
- तुर्की और भारत के मध्य पर्यटन में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- एर्दोगान ने भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है।
- तुर्की मध्य पूर्व एशिया का महत्त्वपूर्ण देश है। अतः इसे भारत की मध्य-पूर्व नीति में महत्त्वपूर्ण स्थान अवश्य प्राप्त होना चाहिये।
इस प्रकार यद्यपि तुर्की का झुकाव पाकिस्तान के पक्ष में है लेकिन फिर भी भारत की सदैव यह कूटनीति रहनी चाहिये कि वह विरोधियों को तटस्थ बनाए, तटस्थों को मित्र बनाए तथा मित्रों को सहयोगी बनाए। प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं चतुर कूटनीति के बल पर भारत अपने हित से संबंधित विषयों पर अन्य राष्ट्रों का दृष्टिकोण बदल सकता है।
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