"निजी शिक्षा संस्थानों द्वारा शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। वे अत्यधिक फीस वसूली करते हैं लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार गिरावट जारी है। अतः शिक्षा का उचित विनियमन करना आवश्यक है।" इस संबंध में अपने सुझाव दें।
उत्तर :
"शिक्षा एक अर्द्ध-सार्वजनिक वस्तु (Quasi-Public Good) है जिसे केवल बाज़ार तंत्र के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण तरीके से प्रदत्त नहीं किया जा सकता। इसके अलावा निजी स्कूलों द्वारा अत्यधिक फीस वसूली भी एक राष्ट्रीय मुद्दा है जिसका समाधान किया जाना आवश्यक है।
सुझाव
- शिक्षा राज्य सूची का विषय है। अतः इस संबंध में विनियमन का कार्य राज्य सरकारें कर सकती हैं। राज्य सरकारों को एक ऐसा ‘अर्द्ध-न्यायिक स्कूल नियामक निकाय’ बनाना चाहिये जो सभी निजी एवं सार्वजनिक स्कूलों में आधारभूत शैक्षणिक एवं परिचालन पहलुओं, जैसे-शिक्षकों की संख्या, उनकी योग्यता, शिक्षा का स्तर, सुरक्षा, कक्षाओं आदि मानकों की पूर्ति सुनिश्चित करें।
- इस निकाय को राजनीति और नौकरशाही के हस्तक्षेप से मुक्त रखना चाहिये एवं इसे एक स्वतंत्र, पारदर्शी, जवाबदेह एवं दक्ष संस्था बनानी चाहिये।
- स्कूलों के लिये वार्षिक वित्तीय लेखा परीक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिये एवं उनके लिये अकाउंटिंग मानकों को विकसित किया जाना चाहिये।
- स्कूलों के लिये प्रत्येक वर्ष अगले तीन वर्षों के लिये फीस को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना अनिवार्य करना चाहिये और इसमें किसी भी प्रकार के परिवर्तन को अनुमति प्रदान नहीं की जानी चाहिये।
- एक शिकायत निवारण तंत्र का निर्माण किया जाना चाहिये जिसके माध्यम से फीस में बढ़ोतरी, अन्य वित्तीय मामलों, शिक्षा की गुणवत्ता एवं सुरक्षा जैसे मुद्दों पर शिकायत दर्ज की जा सके।
- सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना चाहिये ताकि वे शोषक निजी शिक्षण संस्थानों का व्यावहारिक विकल्प बन सकें।
इस प्रकार, विनियामक तंत्र की स्थापना से जहाँ एक तरफ निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाने वाला जनता का शोषण कम होगा तो दूसरी ओर शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।