वैश्विक तापन (Global Warming) एवं जलवायु परिवर्तन ने दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों को किस प्रकार से प्रभावित किया है? यहाँ से विस्थापित जलवायु शरणार्थियों के प्रति विकसित देशों की क्या प्रतिक्रिया है? जलवायु शरणार्थियों की समस्याओं को कैसे कम किया जा सकता है? सुझाव दें।
उत्तर :
वैश्विक तापन के परिणामस्वरूप बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण तुवालू फिजी, मार्शल द्वीप, वानुआतु, नाउरू, माइक्रोनेशिया जैसे दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के अलावा जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप चक्रवातों की बारंबारता में वृद्धि होने, मरुस्थलीकरण के बढ़ने, मिट्टी के क्षरण आदि के कारण भी इन देशों के निवासी यहाँ से विस्थापित हो रहे हैं एवं अन्य देशों में ‘जलवायु शरणार्थी’ के रूप में शरण लेने को मजबूर हैं।
विकसित देशों की प्रतिक्रिया
- विश्व बैंक ने ‘पैसिफिक पोसिबल (Pacific Possible) कार्यक्रम शुरू किया जिसके अंतर्गत इन द्वीपीय देशों में श्रम गतिशीलता, मत्स्य पालन, गहन सागरीय खनन एवं पर्यटन जैसे अवसरों को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा जलवायु परिवर्तन, गैर-संचारी रोगों आदि मुद्दों को संबोधित किया जाएगा।
- इस कार्यक्रम के तहत विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि प्रति व्यक्ति अनुकूलन लागत (Adaptation Cost) काफी उच्च है। इस लागत की ‘अंतर्राष्ट्रीय मुआवजा आयोग’ के द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय फंड के माध्यम से पूर्ति की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है।
- तुवालू के प्रधानमंत्री के अनुरोध पर न्यूज़ीलैंड ने प्रतिवर्ष तुवालू के 75 नागरिकों को स्थानांतरित करने की अनुमति देने के लिये सहमति जताई है। यद्यपि ऑस्ट्रेलिया ने इस प्रकार की अनुमति प्रदान करने से इनकार कर दिया है।
क्या किया जाना चाहिये?
- वर्तमान दर के साथ ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) का उत्सर्जन 2050 तक 50% तक बढ़ने का अनुमान है। ऐसी स्थिति में इन द्वीपों को डूबने से रोक पाना असंभव प्रतीत हो रहा है। अतः GHGs के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी कर पाने पर ही इन द्वीपों के डूबने की गति को मंद किया जा सकता है।
- वैश्विक स्तर पर एक साझा मंच बनाना चाहिये जिसके माध्यम से द्वीपीय देशों में केस-स्टडी की जाए, वहाँ कि निवासियों को अनुकूलित किया जाए एवं आवश्यकता पड़ने पर उनके उचित विस्थापन की व्यवस्था की जाए। इसके माध्यम से विभिन्न देशों के मध्य बहुपक्षीय वार्ता कर दिशा-निर्देश तैयार किये जाएँ।
- संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के तहत स्वीकृत रणनीतियों एवं पेरिस समझौते का कार्यान्वयन किया जाए एवं ग्लोबल वार्मिंग की रोकथाम के लिये विकसित देशों द्वारा फंड प्रदान करने को अनिवार्य किया जाए।
- जलवायु शरणार्थियों को कानूनी तौर पर मान्यता प्रदान की जाए। जिनेवा कन्वेंशन 1951 के तहत युद्ध और उत्पीड़न से पीड़ित शरणार्थियों को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है जबकि जलवायु शरणार्थियों को नहीं।