विधायिका के सदस्यों की दोषसिद्धि से संबंधित जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों का उल्लेख करते हुए अपराध की दोषसिद्धि पर चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की समीक्षा करें।
उत्तर :
चुनाव आयोग ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका (PIL) का समर्थन किया है जिसमें दोषसिद्ध राजनेताओं पर चुनाव लड़ने और विधायिका में प्रवेश करने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है।
दोषसिद्ध विधायिका-सदस्यों पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA, 1951) में निम्नलिखित प्रवधान किये गए हैं-
- इस अधिनियम की धारा 8(1) और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई विधायिका सदस्य (सांसद अथवा विधायक) हत्या, बलात्कार, अस्पृश्यता; विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन; धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराध में लिप्त होता है तो वह इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा एवं इसे 6 वर्ष के अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
- धारा 8(3) में यह प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधोंके अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक की कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से आयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति को सजा पूरी किये जाने की तिथि से 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य माना जाएगा।
- हालाँकि, धारा 8(4) में यह प्रावधान है कि यदि दोषी विधायिका सदस्य निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ तीन महीने के भीतर उच्च न्यायालय में अपील दायर कर देता है तो वह अपनी सीट पर बना रह सकता है। किंतु, 2013 में ‘लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा को असंवैधानिक ठहरा कर निरस्त कर दिया था।
दोष सिद्ध विधायिका सदस्यों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के पक्ष में तर्क-
- यह कदम राजनीति के निरपराधीकरण में सहायक होगा। ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स’ के अनुसार वर्तमान लोकसभा में चुने गए 34% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। अतः लगातार राजनीति में अपराधीकरण बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में यह कदम उपर्युक्त कहा जा सकता है।
- यह भविष्य में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों के लिये एक निवारक कारक की तरह कार्य करेगा और वे किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल होने से बचेंगे।
- विधायिका में स्वच्छ पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का प्रवेश होगा। इससे आम जनता का राजनीतिक व्यवस्था में विश्वास मजबूत होगा और लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होगी।
इसके विपक्ष में तर्क-
- आजीवन प्रतिबंध की सजा अधिक सख्त है क्योंकि 6 वर्ष तक मुख्य धारा राजनीति से बाहर रहने के पश्चात किसी राजनीतिज्ञ का पुनः स्थापित होना लगभग असंभव होता है
- इस प्रकार के कदमों का दुरूपयोग भी किया जा सकता हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वी नेताओं का सफाया करने अथवा निर्दोष राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर दोषारोपण के लिये भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- हालाँकि चुनाव आयोग का यह समर्थन भारतीय राजनीति को स्वच्छ करने की दिशा में एक दूरगामी एवं महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है लेकिन इससे यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस प्रकार के कठोर प्रावधानों का दुरूपयोग न हो।