मौर्योत्तर काल में कला तथा संस्कृति के विकास को दर्शाते हुए इस काल में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास को स्पष्ट करें।
10 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
उत्तर की रूपरेखा
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मौर्योत्तर काल में भारतीय शासन में विदेशियों का बड़े पैमाने पर समावेश हुआ, जिससे भारतीय कला तथा संस्कृति विदेशी तत्त्वों से प्रभावित होकर नए रूप में उभरी।
समाज में नए शासकों को तृतीय श्रेणी के क्षत्रिय का दर्जा दिया गया। इससे हिंदू धर्म का सामाजिक आधार व्यापक हुआ। वहीं ,नए-नए लोगों के आगमन तथा व्यापारियों के क्रियाकलाप में वृद्धि होने से बौद्ध धर्म भी प्रभावित हुआ। दान से मिलने वाले धन की अधिकता से यह भौतिक कार्यों की ओर आकर्षित हुए। परिणामतः कर्मकांडों पर आधारित महायान संप्रदाय का विकास हुआ। कुषाण शासक इसी धर्म के संरक्षक थे।
विदेशियों के प्रभाव से भारत में मूर्तिकला तथा स्थापत्य कला का भी विकास हुआ। मूर्तिकला में गांधार तथा मथुरा शैली का उद्भव हुआ। गांधार कला में रोम तथा यूनान की शैली में बुद्ध की प्रतिमाओं को बनाया गया है। मथुरा कला गंधार शैली की तुलना में अधिक आध्यात्मिक है। स्थापत्य के क्षेत्र में नए बौद्ध विहारों की स्थापना की गई। भरहूत तथा साँची के स्तूपों पर भी उस काल के प्रभाव को देखा जा सकता है। स्थापत्य के क्षेत्र में नागार्जुनकोंडा तथा अमरावती बौद्ध कला के बड़े केंद्रों के रूप में उभरे, जहाँ बुद्ध के जीवन की कथाएँ चट्टानों पर अंकित की गई हैं।
साहित्य के क्षेत्र में संस्कृत भाषा का विस्तार हुआ। रुद्रादमन के जूनागढ़ अभिलेख में संस्कृत भाषा के प्रभाव को देखा जा सकता है। अश्वघोष ने संस्कृत में ‘बुद्धचरित’ तथा ‘सौन्दरानंद’ की रचना की। वहीं बौद्धों के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘महावस्तु’ तथा ‘दिव्यवादन’ की रचना भी मिश्रित संस्कृत में की गई। धार्मिकेत्तर साहित्य में वात्सायन का कामसूत्र इसी काल में लिखा गया। इसमें नगरों में रहने वाले पुरुषों का चित्रण नगरीय संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। इसके अलावा भारतीय नाट्य कला में यवनिका अर्थात् पर्दे का प्रयोग इस युग की बड़ी घटना है।
विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए विकास:
यूनानियों के प्रभाव से भारत में ज्योतिष शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, वनस्पति शास्त्र और रसायन शास्त्र का विकास हुआ। चरक तथा सुश्रुत ने इन क्षेत्रों में परिपक्व ज्ञान का उल्लेख किया है। चरक संहिता में चिकित्सा के लिये प्रयोग होने वाली असंख्य वनस्पतियों का उल्लेख है। कई वनस्पतियों को मिलाकर औषध बनाने का साक्ष्य हमारे रसायन शास्त्र के परिपक्व ज्ञान को दर्शाता है।
तकनीक के क्षेत्र में पतलून तथा चमड़े के जूते बनाने की तकनीक को देखा जा सकता है। इसके अलावा सिक्का निर्माण की तकनीक में भी रोमन प्रभाव को देखा जा सकता है। इस कार्य में शीशे के काम पर विदेशी तरीकों का विशेष प्रभाव पड़ा और व्यापक प्रगति हुई। इसके अलावा रस्सी से बने रकाब का प्रयोग भी इसी काल में हुआ।
स्पष्ट है कि इस काल में उपरोक्त सभी क्षेत्रों में भारत का बहुआयामी विकास हुआ।