- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
फिल्म सेंसरशिप के संबंध में ‘श्याम बेनेगल समिति’ की प्रमुख अनुशंसााओं का उल्लेख करें। फिल्मों की प्री-सेंसर शिप के विरोध में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में उठाए गए मुद्दों की विवेचना करें।
23 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
फिल्म सेंसरशिप के प्रावधान सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 और सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल्स, 1983 द्वारा नियंत्रित होते हैं जिनमें फिल्मों के प्री-सेंसरशिप का प्रावधान है। सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत ‘सेंसरशिप एवं केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की स्थापना हुई।
सेंसरशिप एवं केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के कार्यों की समीक्षा के लिये सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ‘श्याम बेनेगल समिति’ का गठन किया, जिसकी प्रमुख अनुशंसाएँ निम्नलिखित हैं-
- CBFC का कार्य केवल फिल्मों के श्रेणी निर्धारण एवं उनके प्रमाणीकरण का होना चाहिये। इसके द्वारा फिल्मों को संशोधित करने, काट-छांट करने का सुझाव देने की वर्तमान प्रणाली को बंद किया जाना चाहिये।
- वस्तुनिष्ठ मापदंडों के माध्यम से फिल्म निर्माताओं की कलात्मक अभिव्यक्ति एवं रचनात्मक स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिये।
- प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को सामाजिक परिवर्तनों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिये।
फिल्मों के प्री-सेंसरशिप के संबंध में अभिनेता अमोल पालेकर द्वारा सर्वोच्च न्यायालय एक जनहित याचिका दायर की गई जिसमें निम्नलिखित मुद्दों को उठाया गया-
- फिल्मों की प्री-सेंसरशिप के परिणामस्वरूप फिल्मों की काट-छांट, दृश्य हटाना और उन्हें सेंसर करना जैसे कार्य किये जाते हैं जो कलाकारों के साथ-साथ दर्शकों की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
- फिल्मों की प्री-सेंसरशिप इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में अप्रासंगिक है।
- डॉक्यूमेंट्री को प्री-सेंसरशिप अनुचित है क्योंकि समाचारों और वास्तविक घटनाओं का प्रसारण प्री-सेंसरशिप के अधीन नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय पीठ ने 1970 के K.A. अब्बास मामले में निर्णय दिया था कि फिल्में जनसंपर्क का सबसे प्रभावशाली माध्यम है जो समाज की मानसिकता को व्यापक रूप से प्रभावित करता है, इसलिये सिनेमैटोग्राफी एक्ट के अंतर्गत सेंसरशिप का प्रयोग वैध और आवश्यक है। दूसरी तरफ, सर्वोच्च न्यायालय ने अभिनेता अमोल पालेकर द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार एवं CBFC से फिल्मों की प्री-सेंसरशिप पर उत्तर मांगा है।
यद्यपि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(2) वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, किंतु लोक व्यवस्था, शिष्टाचार, अपराध उद्दीपन आदि के संबंध में इस स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त निर्बंधनों का भी प्रावधान करता है। अतः दोनों विषयों के बीच उचित संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print