‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA)’ का सैन्य बलों द्वारा किये जाने वाले दुरूपयोग को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि कोई न्यायेत्तर हत्या न हो। न्यायालय के इस निर्णय का महत्त्व बताते हुए इस कानून के पक्ष-विपक्ष में दिये जाने वाले तर्कों का विश्लेषण करें।
उत्तर :
उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में AFSPA कानून के अंतर्गत की गई कार्रवाई से पीड़ित परिवारों की याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया कि देश के संवेदनशील इलाकों में सशस्त्र बलों द्वारा की गई प्रत्येक हत्या की जाँच की जाएगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी की न्यायेत्तर हत्या ना हो।
न्यायालय के इस निर्णय का महत्त्व
- उच्चतम न्यायालय ने इस निर्णय से सशस्त्र बलों की जवाबदेहिता निर्धारित की ताकि मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में कमी लाई जा सके।
- न्यायालय के अनुसार AFSPA के तहत संवेदनशील क्षेत्रों में सामान्य स्थिति बहाल करने के नाम पर सशस्त्र बलों को अनिश्चितकालीन समय के लिये तैनात करना नागरिक प्रशासन की विफलता एवं हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उपहास है।
- न्यायालय के इस निर्णय से सशस्त्र बलों द्वारा आम नागरिकों पर की जाने वाली कार्रवाइयों पर लगाम लगेगी।
ध्यातव्य है कि संवेदनशील और अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था की बहाली के लिये 1958 में AFSPA पारित किया गया था। इसके माध्यम से घोषित संवेदनशील क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को उनके द्वारा की गई कार्रवाइयों के लिये प्रतिरक्षा मिल गई थी।
AFSPA के पक्ष में तर्क
- आतंकवाद से ग्रसित क्षेत्रों और राजद्रोह के मामलों में सशस्त्र बल इस कानून द्वारा मिली शक्तियों के कारण प्रभावशाली तरीके से काम कर पाते हैं। इस प्रकार यह कानून देश की एकता और अखंडता की रक्षा में योगदान दे रहा है।
- अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था एवं शांति बनाए रखने के लिये इस कानून के प्रावधानों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इस कानून के माध्यम से मिले अतिरिक्त अधिकारों के कारण सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा है।
AFSPA के विपक्ष में तर्क
- AFSPA पर यह आरोप लगाया जाता है कि इस कानून के माध्यम से मिली शक्तियों का सशस्त्र बल दुरूपयोग करते हैं। उन पर फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न आदि के आरोप लगे हैं। इस प्रकार यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।
- यह कानून नागरिकों के मूल अधिकारों का निलंबन करता है जिससे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि लागू होने के 50 वर्षों बाद भी AFSPA अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बहाल करने में सफल नहीं हो पया जो साबित करता है कि यह कानून असफल है। अतः इसे हटा देना चाहिये।
- सशस्त्र बलों को मिली अत्यधिक शक्तियाँ उन्हें असंवेदनशील और गैर-पेशेवर बनाती है।
निष्कर्षः AFSPA की समीक्षा के लिये वर्ष 2004 में बनी समिति ने इस कानून को निरस्त करने की अनुशंसा की तथा इसे दमन, घृणा और शोषण का प्रतीक माना। एक तरफ 50 से अधिक वर्षों में यह वांछित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सका तो दूसरी तरफ इसके द्वारा होने वाले मानवाधिकारों की घटनाओं को देखते हुए इसकी समीक्षा की जानी आवश्यक हो गई है।