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प्रश्न :
‘बिम्सटेक (BIMSTEC)’ ने अपनी स्थापना के 20 वर्षों में भारत सहित अपने अन्य सदस्य देशों के लिये भी विकास के अनेक अवसर प्रदान किये हैं। बिम्सटेक में व्याप्त संभावनाओं केा देखते हुए, भारत इसमें पुनः नए सिरे से रूचि का संकेत दे रहा है। इस विषय को स्पष्ट करते हुए बताएँ कि भारत की बिम्सटेक में बढ़ती रूचि के क्या कारण हैं? बिम्सटेक की प्रगति के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
29 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi - Sectoral Technical and Economic Cooperation) ने अपनी स्थापना के 20 साल पूरे कर लिये हैं। जून 1997 में ‘बैंकॉक घोषणा’ के द्वारा इसकी स्थापना हुई जिसने अपने सदस्य देशों को विकास के अनेक अवसर प्रदान किये-
- बिम्सटेक ने पूर्वोतर भारत और म्यांमार के माध्यम से भारत को दक्षिण-पूर्वी एशिया के साथ सीधे संपर्क स्थापित करने का अवसर प्रदान किया।
- म्यांमार और अन्य सदस्य देशों के साथ सहयोग के माध्यम से भारत को अपने आतंकवाद एवं उग्रवाद रोधी अभियानों के संचालन में सहायता मिली।
- म्यांमार एवं आसियान क्षेत्र के ऊर्जा संसाधनों के साथ-साथ आसियान में उपलब्ध आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने में भारत सक्षम हुआ।
- म्यांमार जहाँ अपने सैन्य शासन के कारण वैश्विक आलोचना का सामना कर रहा था, वहीं बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय समूहों के माध्यम से म्यांमार के सैन्य शासकों को स्थानीय हितधारकों के बीच कुछ मान्यता मिली।
- भारत की ‘लुक ईस्ट नीति’ और थाईलैंड की ‘लुक वेस्ट नीति’ ने बिम्सटेक के दायरे में एक दूसरे के साथ मिलकर काम किया। भारत-म्यांमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और भारत-म्यांमार ‘कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट’ से इस क्षेत्र में क्षेत्रीय संपर्क और आर्थिक सहयोग बढ़ाने में सहयोगी होंगी।
- नेपाल और भूटान जैसे स्थल-आबद्ध देशों के लिये बिम्सटेक के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के पर्याप्त अवसर है।
भारत बिम्सटेक में अधिक रूचि क्यों ले रहा है?
- सीमापार आतंकवाद और उग्रवाद से मुकाबला करने के लिये भारत को ऐसे क्षेत्रीय संगठन की आवश्यकता है जिसके सदस्य देश आतंकवाद के मुद्दे पर वैचारिक रूप से एकमत हों।
- बिम्सटेक के माध्यम से भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संपर्क बढ़ाकर अपने व्यापार को बढ़ा सकता है। इसके माध्यम से ब्लू-इकॉनमी को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके लिये गोवा शिखर सम्मेलन में जारी घोषणापत्र में तटीय जहाजरानी समझौता करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
- बिम्सटेक के माध्यम से भारत आसियान देशों के साथ संपर्क बढ़ा सकता है।
- सार्क की प्रगति में जहाँ पाकिस्तान बाधक बना हुआ है वहीं पाकिस्तान बिम्सटेक का सदस्य नहीं है अतः इसकी प्रगति में बाधाएँ अपेक्षाकृत कम होंगी।
बिम्सटेक की प्रगति के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँः
- भारत बिम्सटेक का सबसे बड़ा सदस्य है लेकिन मजबूत नेतृत्व प्रदान नहीं कर पाने के कारण भारत की सदैव आलोचना होती रही है।
- थाईलैंड और म्यांमार भी बिम्सटेक के बजाय आसियान को अधिक महत्त्व देते हैं।
- बिम्सटेक के सदस्य राष्ट्रों में आपसी समन्वय की कमी है एवं नियमित एवं प्रभावशाली वार्ताओं का आयोजन नहीं होता।
- लंबे समय से बिम्सटेक के लिये स्थायी सचिवालय की स्थापना की मांग की जाती रही है लेकिन बिम्सटेक की स्थापना के 17 वर्षों पश्चात वर्ष 2014 में इसकी स्थापना हो पाई।
- बिम्सटेक के अंतर्गत क्षेत्रीय संपर्क का कार्य काफी धीमी गति से हो रहा है जबकि BCIM कॉरीडोर की स्थापना के लिये चीन काफी सक्रिय है।
बिम्सटेक के सभी सदस्य देशों की सक्रिय भागीदारी एवं परस्पर समन्वय के माध्यम से इस क्षेत्रीय संगठन को आर्थिक विकास का केंद्र बनाना चाहिए। संगठन के बेहतर कार्यान्वयन के लिये कम प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
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