भारत में नदी जल विवादों के कारण न केवल राजनीतिक बल्कि गंभीर सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं। इन चुनौतियों का विवरण प्रस्तुत करते हुए इनसे निपटने के उपाय सुझाएँ।
उत्तर :
स्वतंत्रता के पश्चात जनसंख्या की तीव्र वृद्धि, कृषि विकास, शहरीकरण, औद्योगीकरण आदि के कारण जल की मांग में लगातार वृद्धि होती गई। इस कारण इन नदियों के जल में हिस्सेदारी के संबंध में अनेक अंतर्राज्यीय जल विवाद उत्पन्न हुए।
नदी जल विवादों से उत्पन्न प्रमुख चुनौतियाँ
- नदी जल विवादों के कारण राज्यों के आपसी संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाता है। कावेरी नदी विवाद के संबंध में कर्नाटक एवं तमिलनाडु के मध्य राजनीतिक विवादों के अलावा नागरिक और जातीय संघर्ष भी देखे गए हैं।
- तेलंगाना अलगाववादी आंदोलन के दौरान उठाए गए मुद्दों में जल संसाधनों की साझेदारी के संदर्भ में क्षेत्रीय असंतुलन भी एक प्रमुख मुद्दा था।
- भारत में जल संसाधनों के विभाजन के संबंध में राजनीतिक लामबंदी की जाती है एवं ऐसे राजनीतिक आंदोलनों के कारण क्षेत्रवाद और अलगाववादी भावनाएँ पनपती हैं जो भारत की एकता और अखंडता के लिये घातक हैं।
- इस प्रकार के संघर्षों से नदीय जल पर निर्भर लोगों की आजीविका प्रभावित होती है। हिंसक आंदोलनों से कानून व्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं तथा लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है।
सुझाव
- राज्यों के साझा हितों से संबंधित विषयों की जाँच करने एवं इन विषयों पर नीति-निर्माण एवं उनके उपयुक्त कार्यान्वयन की सिफारिश के लिये संविधान के अनुच्छेद 263 में अंतर्राज्यीय परिषद के गठन का प्रावधान है। इस परिषद के माध्यम से राज्यों के बीच के नदी जल विवादों को वार्त्ता एवं सहमति के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।
- नदी जल विवादों पर बने न्यायाधिकरणों को बहु-सदस्यीय निकाय होना चाहिये तथा इसे अधिक सहभागी एवं समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाकर मुद्दों को सुलझाना चाहिये।
- नदी परिषद अधिनियम के अंतर्गत नदी बेसिन संगठन (RBO) की स्थापना कर राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं शांतिवार्ता के माध्यम से विवादों का समाधान किया जा सकता है।
- जल विवादों का मुख्य कारण जल की मांग-आपूर्ति में साम्य की कमी है। अतः विभिन्न जल संरक्षण तकनीकों के माध्यम से जलापूर्ति को बढ़ाया जा सकता है एवं जल की मांग को कम किया जा सकता है।
- नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाना चाहिये तथा संबंधित राज्यों के कमांड क्षेत्र के विकास के लिये राष्ट्रीय योजनाएँ आरंभ की जानी चाहिये। इस दिशा में दामोदर घाटी की भांति अलग-अलग निगमों की स्थापना उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
हाल ही में लोकसभा में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2017 प्रस्तुत किया गया जिसमें नदी जल विवादों के निपटारे के लिये अलग-अलग अधिकरणों के स्थान पर एक स्थायी अधिकरण की व्यवस्था का प्रस्ताव है। अधिकरण का निर्णय अंतिम होगा तथा संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी होगा। इससे नदी जल विवादों के समाधान में तेजी आएगी तथा देश के आर्थिक विकास में जल संसाधनों का उचित उपयोग किया जा सकेगा।