"आधुनिक और सभ्य समाज में ‘आपराधिक मानहानि’ (Criminal defamation)’ को तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता।" आपराधिक मानहानि पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय की समीक्षा करते हुए इस निर्णय पर अपना तर्क प्रस्तुत करें।
05 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थासर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मानहानि से संबंधित भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 एवं 500 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर निर्णय देते हुए आपराधिक मानहानि कानून की वैधता को बरकरार रखा है। IPC की इन धाराओं के तहत मानहानि के मामले में कारावास के दण्ड का प्रावधान है।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं-
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए इस निर्णय से अपराधी ठहराए जाने के भय से ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का प्रयोग सीमित हो सकता है। कई बार प्रभावशाली लोगों द्वारा इस प्रावधान का दुरूपयोग उनके खिलाफ उठी आवाज को दबाने में किया जा सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर प्रदान किये जाने वाले प्रतिष्ठा के अधिकार को सरकार जैसी मजबूत संस्थाओं को प्रदान नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि ऐसी संस्थाओं के पास अपनी प्रतिष्ठा पुनः अर्जित करने की पर्याप्त क्षमता होती है। दूसरी ओर, मानहानि के लिये नागरिक संहिता में भी पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं तथा इसे आपराधिक कृत्य की श्रेणी में शामिल करना वैश्विक परंपराओं से भी असंगत है।
इस प्रकार, आपराधिक मानहानि को राज्य के हाथों में कोई शोषण का साधन बनने की इजाजत नहीं देनी चाहिये, विशेषकर तब, जब आपराधिक प्रक्रिया संहिता द्वारा सरकारी कर्मचारियों को अत्यधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। ‘व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार’ एवं ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार’ के मध्य उचित संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।